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मैं नक्सली नहीं कलाकार हूं, फंसाने की हो रही है साजिश, किसी से डरने वाला नहीं : कलादास डेहरिया - Kaladas Dehariya - KALADAS DEHARIYA

Kaladas Dehariya छत्तीसगढ़ के भिलाई में NIA ने गुरुवार को कलादास डेहरिया के घर छापामार कार्रवाई की थी.कलादास पर आरोप लगे कि उसका कनेक्शन नक्सलियों के साथ है.लेकिन इन आरोपों पर कलादास अब सामने आए हैं.कलादास की माने तो उन्हें जबरन फंसाने की साजिश रची जा रही है. serious allegations against NIA

Kaladas Dehariya
कलादास ने NIA पर लगाए गंभीर आरोप (ETV Bharat Chhattisgarh)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 29, 2024, 4:07 PM IST

भिलाई :भिलाई में कलादास डहरिया ने NIA के छापे और नक्सली कनेक्शन को लेकर बड़ा बयान दिया है.कलादास डेहरिया के मुताबिक वो एक कलाकार हैं.जो हर राज्य में जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं.ऐसे में कौन उनसे आकर मिलता है और कौन नहीं इस बात की जानकारी उन्हें नहीं होती.यदि मुझसे आकर किसी नक्सली ने मुलाकात भी की होगी,तो इस बात की जानकारी मुझे कैसे हो सकती है. NIA जो भी कार्रवाई मेरे खिलाफ करना चाहती है वो कर सकती है.

मुझे फंसाने की साजिश ?:कलादास डेहरिया ने कहा कि साल 2008-09 में मेरे नेतृत्व में नाचा गम्मत टीम ने नशाखोरी के खिलाफ पूरे छत्तीसगढ़ में जन जागरण यात्रा निकाली थी, जिसके सम्मान में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने घर आकर पुरस्कार दिया था. अब मुझको फर्जी मामले में फंसाने की साजिश की जा रही हैं.आप सभी जानते हैं कि शहीद शंकर गुहा नियोगी ने इन मुद्दों को लेकर देशव्यापी आंदोलन चलाया था,जिससे हमारे देश की व्यवस्था और उद्योगपतियों को यह पसंद नहीं आया. 28 सितंबर 1991 को सोते समय उनकी हत्या कर दी गई.

मैं नक्सली नहीं कलाकार हूं: कलादास डेहरिया (ETV Bharat Chhattisgarh)

मजदूरों के लिए लड़ने वालों की आवाज दबाने की कोशिश : कलादास की माने तो विश्वरंजन को सबसे पहले नक्सलवादी कहा गया था. शायद उसी तर्ज पर नियोगी के सिपाहियों को दबाने की साजिश मजबूती से चल रही है, जिसका एक हिस्सा हम सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी भी देख सकते हैं, जो मजदूरों, किसानों और आदिवासियों के लिए मुखर होकर आवाज उठाती रही हैं. वे दलितों के लिए सड़क और कोर्ट दोनों जगह लड़ती रही हैं और आज भी लड़ रही हैं.

'' जनता की आवाज उठाने वाले लोगों को चुप कराने की साजिश है, ताकि देश के मजदूर वर्ग को राहत ना मिल सके. उन्हें वापस गुलामी में ले जाया जाए. जिसमें जनता को वही करना होगा जो नेता और उद्योगपति कहेंगे, यानी वे जनता को जानवर समझकर उसका इस्तेमाल करेंगे और वह सिर्फ वोटिंग मशीन बनकर रह जाएगी.'' कलादास डेहरिया, सामाजिक कार्यकर्ता

वहीं हाईकोर्ट की वकील शालिनी का कहना है कि आज भी हमारा देश आजाद नहीं बल्कि गुलाम है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि आजादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाले हजारों शहीदों के बलिदान के परिणामस्वरूप एक अच्छा संविधान और लोकतंत्र बना जिसमें हमें मौलिक अधिकारों के साथ निजता का अधिकार भी मिला. छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदूर कार्यकर्ता समिति से शालिनी ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की है.

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