मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: मनेंद्रगढ़ से 30 किलोमीटर दूर जटाशंकर धाम भगवान शिव को समर्पित है. पहाड़ी के ऊपर स्थित यह स्थान अपने प्राकृतिक शिवलिंग, गुफाओं, झरनों और घने जंगलों के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने यहां अपनी जटाओं से बहती जलधारा उत्पन्न की थी, जिससे इस स्थान का नाम "जटा शंकर" पड़ा.
राजा रामानुज सिंह देव और जटाशंकर धाम की स्थापना:इस धाम का ऐतिहासिक महत्व कोरिया के राजा रामानुज सिंह देव से जुड़ा है. लोककथाओं के अनुसार, राजा भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. एक बार उन्हें स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन दिए और इस स्थान पर एक अद्वितीय शिवलिंग होने का संकेत दिया. राजा ने इस स्वप्न को अपने गुरुओं के साथ साझा किया और उनके मार्गदर्शन में इस स्थान की खोज शुरू की.
खोज के दौरान, घने जंगलों में एक प्राकृतिक शिवलिंग मिला. इसे देखकर राजा और उनके दरबारियों ने इसे भगवान शिव का दिव्य चमत्कार माना, उन्होंने यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया और इस स्थान को "जटाशंकर धाम" के रूप में प्रसिद्धि दिलाई.
भोलेनाथ यहां आते अपना कमंडल रख देते थे. उसमें अपने आप दूध भर जाता था, फिर उसे वह अपने साथ लेकर चले जाते थे. जब उनकी कृपा होती तो स्यानों को दर्शन देते. उनसे जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मैं जटाशंकर. अंदर शिव का जटा बंधी है, जिसमें से पानी की एक पतली धार निकलती रहती है. पौने दो साल से लोगों का यहां आना जाना शुरू हुआ. उससे पहले यहां कोई नहीं आ सकता था. ये काफी दुर्गम क्षेत्र है. पहले सिर्फ राजा साहब आते थे. जटाशंकर की जलधाना को पानी पीने बाघ पहुंचते हैं. बाघ के पैरों के निशान से इस बात का पता चलता है :शिवदास, पुजारी