जयपुर.स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश चल रहे हैं. ऐसे में अभिभावक अपने बच्चों के कौशल विकास के लिए उन्हें विभिन्न समर कैंप में भेजते हैं. ताकि बच्चे एक्टिव रहे और उनका हिडन टैलेंट निखर कर सामने आए. शहर भर में ऐसे कई समर कैंप लगे हुए हैं, जहां बच्चों को स्पोर्ट्स एक्टिविटी, क्रिएटिव एक्टिविटी और स्किल डेवलपमेंट कराया जा रहा है, लेकिन जयपुर में एक ग्रीष्मकालीन शिविर ऐसा भी है, जहां बच्चों को वेद-पुराणों का पाठ सिखाते हुए संस्कारित किया जा रहा है और नैतिक मूल्यों की पहचान कराई जा रही है. खास बात यह है कि इस शिविर से न सिर्फ बच्चे, बल्कि उनके अभिभावक भी जुड़ते हैं और पिता-पुत्र, मां-बेटी यहां साथ क्लास लेते हैं.
10 साल से हो रहा शिविर का आयोजन : हर सुबह सफेद या भगवा वस्त्र धारण कर, सिर पर शिखा और हाथों में वेद-पुराण, रामायण गीता जैसे धर्म ग्रंथों को लेकर सैकड़ों बच्चे परकोटा क्षेत्र में वेद स्वाध्याय पीठ की ओर से संचालित ग्रीष्मकालीन शिविर में पहुंचते हैं. यहां शंखनाद के साथ क्लास शुरू होती है. भोजन मंत्र के साथ समापन होता है. वैसे तो बच्चों को संस्कारित करने के लिए वर्ष भर गुरुकुल के नाम से ये पाठशाला संचालित होती है, लेकिन ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान छात्रों को अपने संस्कारों और संस्कृति से जोड़ने के लिए ये विशेष शिविर बीते 10 साल से लगाया जा रहा है. यहां बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए 27 दिन तक रुद्री पाठ, शांति पाठ, मंगल पाठ, स्वस्तिवाचन, ज्योतिष, योग और साधना के साथ-साथ नियमित अलग-अलग विद्वानों की ओर से किसी विषय पर प्रशिक्षण दिया जाता है.
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रोकने पड़े रजिस्ट्रेशन :इस विशेष ग्रीष्मकालीन शिविर के संबंध में वेद स्वाध्याय पीठ के अध्यक्ष आचार्य योगेश पारीक ने बताया कि उनके गुरु ग्यारसीलाल वेदाचार्य निशुल्क वेद विद्यालय शुरू करना चाहते थे, जिसमें वेदों के साथ-साथ संस्कृति की शिक्षा भी दी जाए. इसमें 27 नक्षत्र पेड़-पौधे और हवन की विधि देवी-देवताओं का परिचय वैदिक मंत्रों का उच्चारण किस तरह होना चाहिए. उनके इस स्वप्न को साकार करने के प्रयास के तहत वेद स्वाध्याय पीठ ने एक पहल की. शुरुआत में 30 बच्चों के साथ शिविर की शुरुआत की गई, जो आज बढ़कर 500 हो गई है और स्थिति यह है कि रजिस्ट्रेशन भी रोकने पड़ रहे हैं.
उन्होंने बताया कि सुबह 8 से 10 बजे तक की क्लासेस रहती हैं. उसमें मेडिटेशन, ध्यान, योग, स्तुति, वाणी संयम, सत्य, गौ माता की पूजा, द्वादश ज्योतिर्लिंगों का महत्व, 18 पुराणों का महत्व, 27 नक्षत्र के पेड़-पौधों को जीवन के साथ कैसे जोड़ा गया, पशु पक्षी को सनातन धर्म के साथ क्यों जोड़ा गया, मंत्र, जाप, आसन की विधि, अर्चना के लिए मालाओं और आसानों आदि का ज्ञान यहां दिया जाता है. उन्होंने बताया कि जो बच्चा आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है, वो कभी अवसाद या डिप्रेशन में नहीं जाता और बच्चों में सेल्फ कॉन्फिडेंस आता है साथ ही वो दूसरे बच्चों से खुद को अलग पाते हैं. उन्होंने कहा कि उनका ध्येय यही है कि जिस भारत को सोने की चिड़िया और विश्व गुरु के रूप में माना जाता था, एक बार फिर भारत उसी स्थान पर पहुंचे.