जबलपुर : काली पूजा की परंपरा बंगाल में प्रचलित है लेकिन बंगाल के बाद यदि काली पूजा सबसे ज्यादा कहीं होती है वह मध्यप्रदेश का जबलपुर शहर है. जबलपुर में बीते 150 सालों से काली पूजा हो रही है. वहीं इस साल 50 से ज्यादा काली पंडाल लगाए गए हैं. इन्हीं में सबसे प्रसिद्ध हैं मन्नत वाली महाकाली, जिन्हें मन्नत वाली माता और जबलपुर की महारानी नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस नवरात्रि भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा है. जबलपुर की काली पूजा कई मायनो में अनोखी है. आइए जानते हैं मन्नत वाली माता से जुड़े कुछ तथ्य.
जबलपुर में काली पूजा का इतिहास
इतिहासकार बताते हैं कि जबलपुर में दुर्गा और काली पूजा का इतिहास डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुराना है. उस दौर में अंग्रेजों के साथ बंगाल से आए कुछ बंगाली अफसरों ने एक पंडाल में बंगाली पूजा की लेकिन शहर के दूसरे लोगों को पंडाल में आने की अनुमति नहीं दी. बस इसी घटना से नाराज होकर जबलपुर के लोगों ने दुर्गा पूजा के लिए खुद अपने पंडाल बनने की परंपरा शुरू की. पहला पंडाल जबलपुर के सुनरहाई इलाके में लगाया गया और फिर जबलपुर में महाकाली की स्थापना हुई, जो लोगों की मन्नतों पूरी करने के लिए प्रसिद्ध हो गईं.
दशकों से रखी जा रही गढ़ा वाली महाकाली
दुर्गा पूजा के साथ ही जबलपुर में महाकाली की स्थापना भी शुरू हुई और गढ़ा फाटक में महाकाली का पंडाल लगाया गया. आज से लगभग 150 साल पहले जिस जगह पंडाल लगाया गया था वहीं आज भी स्थापना हो रही है और इस पंडाल में नौ दिनों तक देवी की स्थापना होती है और बाकी साल भर इस जगह पर देवी की फोटो रखकर पूजा की जाती है लेकिन पंडाल की जगह दूसरा कोई काम नहीं किया जाता.