जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार के गृह सचिव और डीजीपी को फटकार लगाई है. दरअसल मामला 2016 का है, इसमें कुछ उम्मीदवारों ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर कर प्रदेश सरकार की आरक्षक भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं. इन लोगों का कहना है कि उन्हें मेरिट के आधार पर पोस्टिंग नहीं दी गई है बल्कि पुलिस विभाग ने मनमाने तरीके से उन्हें कमतर विभागों में पोस्टिंग दी है. बता दें कि साल 2016 में पुलिस आरक्षक के लिए 14000 से ज्यादा पदों पर वैकेंसी निकली थी.
प्रवीण कुमार ने दी थी हाईकोर्ट में चुनौती
प्रवीण कुमार कुर्मी ने 2017 में आरक्षक भर्ती परीक्षा दी थी. प्रवीण का सिलेक्शन आरक्षण की बजाय सामान्य वर्ग में हुआ था, क्योंकि ऐसा नियम है कि यदि आरक्षित वर्ग का कोई कैंडिडेट अनारक्षित वर्ग के कैंडिडेट से ज्यादा नंबर लेकर आता है तो उसे सामान्य श्रेणी में भर्ती का लाभ मिलता है. प्रवीण को सामान्य श्रेणी के माध्यम से भर्ती का लाभ तो मिल गया लेकिन उन्हें उनकी पसंद का कैडर नहीं मिला.
याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
इसके बाद प्रवीण ने इसी मुद्दे को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की. हाईकोर्ट ने प्रवीण के दावे को सही नहीं माना और याचिका खारिज कर दी. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को प्रवीण ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि प्रवीण कुर्मी का चयन उसकी काबिलियत के आधार पर सामान्य वर्ग में हुआ है तो उसे उसकी चॉइस से कैडर दिया जाए. इसके बाद प्रवीण को जिला पुलिस बल में भर्ती मिली.
प्रवीण की जीत के बाद दूसरे लोगों ने भी दायर की याचिका
प्रवीण जब केस जीत गए तो उसी को आधार बनाकर 889 दूसरे लोगों ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दायर की और अपनी पद स्थापना के लिए मनचाहा कैडर मांगा. इस मामले में याचिकाकर्ताओं के एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर का कहना है कि "आरक्षित वर्ग के ओबीसी उम्मीदवारों को चॉइस का लाभ नहीं दिया जाता और पुलिस विभाग जहां चाहता है उनकी पोस्टिंग कर देता है. इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पुलिस हेडक्वार्टर से जवाब मांगा तो पुलिस विभाग ने आरोप सही नहीं माना और पुलिस हेडक्वाटर ने बताया कि इन सभी लोगों को उनका मनपसंद का कैडर ही दिया गया है."
पुलिस हेडक्वाटर के जवाब में उम्मीदवारों ने बताया कि वे सामान्य पुलिस बल में भर्ती होना चाहते थे. उनके मेरिट में सामान्य वर्ग के बराबर नंबर थे लेकिन उसके बावजूद उन्हें उनकी वरीयता के अनुसार पोस्टिंग नहीं दी गई और उन्हें सामान्य पुलिस बल की जगह स्पेशल टास्क फोर्स में पोस्टिंग दी गई.