अजमेर : अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेला ऊंट और घोड़ों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इस बार नन्हीं गाय और नंदी भी मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. छोटी आकार वाले नंदी और गायों को देखने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है. इस लुप्त हो रही नस्ल को देखना मेले में आने वाले लोगों के लिए खास अनुभव रहा है. हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश की पुंगनूर नस्ल के नंदी और गाय की.
पीएम नरेंद्र मोदी भी पुंगनूर नस्ल के गौ वंश को संवर्धन के उद्देश्य से उसके साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर चुके हैं. इसके बाद पशु पालकों में पुंगनूर नस्ल की गायों को पालने की होड़ मच गई है. यही वजह है कि आंध्र प्रदेश में पाए जाने वाली यह दुर्लभ नस्ल की गाय अब राजस्थान तक पंहुच गई हैं. जयपुर के एक पशुपालक लुप्त हो रहे इस गौ वंश को अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेले में लेकर आए हैं, जो मेले की शोभा बन गई हैं. दावा है किराजस्थान में ये इकलौते पशुपालक हैं जो पुंगनूर नस्ल की गायों को पाल रहे हैं और पुष्कर में प्रदर्शनी के लिए लाए हैं ताकि और लोग भी इन्हें पालें.
अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेला विविधताओं में एक के लिए भी जाना जाता है. इसमें राजस्थान की सतरंगी लोक संस्कृति ही नहीं, बल्कि अन्य प्रदेशों की संस्कृति के भी दर्शन होते हैं. मेले में ऊंट और अश्व वंश की कई उन्नत नस्लें देखने को मिल रही हैं. वहीं, इन सबके बीच पुंगनूर नस्ल के नन्हे गोवंश को देखना हर किसी हैरान कर देने वाला है. दरअसल, उत्तर और पूर्वी भारत में पुंगनूर नस्ल का गोवंश नहीं पाया जाता है. यह आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्र में ही मिलते हैं, जो अब विलुप्त होने की कगार पर पंहुच चुके हैं. यही वजह है कि खूबसूरत इस गोवंश को बचाने और उनके संवर्धन के लिए जोर दिया जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी भी पुंगनूर नस्ल की गाय के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट कर चुके हैं. पीएम मोदी के बाद यूपी, एमपी के सीएम भी पुंगनूर नस्ल की गाय के पालन और संवर्धन के लिए अपील कर चुके हैं. यही वजह है कि पुंगनूर नस्ल को आगे बढ़ाने के लिए देशभर में कई पशु पालक सामने आए हैं. राजस्थान में भी जयपुर में सिरसी रोड में स्टड फार्म के मालिक अभिनव तिवारी ने भी पुंगनूर नस्ल के गौ वंश को आगे बढ़ने का बीड़ा उठाया है.
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पहले 2 थीं, अब 22 पुंगनूर गौ वंश हैं :फार्म मालिक अभिनव तिवारी बताते हैं कि गौ वंश में सबसे प्राचीन भारतीय नस्ल में से एक पुंगनूर नस्ल का गौ वंश है, जो दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में पाया जाता था. इसका आकार कम होने और दूध कम होने के कारण लोगों ने इसको पालना बंद कर दिया. इस कारण यह नस्ल खत्म होने की कागार पर पंहुच चुकी है. सन 2019 में पुंगनूर गौ वंश की गायों का संरक्षण शुरू हुआ, तब से हमारा भी प्रयास है कि इनकी नस्ल को बढ़ाया जाए. गौ वंश की सभी देशी नस्ल को संरक्षण और संवर्धन मिलना ही चाहिए. तिवारी बताते है कि 2 गाय से उन्होंने शुरुआत की थी, अब उनके पास 22 पुंगनूर गौ वंश हैं. इनमें नंदी और गायें शामिल हैं. इनके अलावा 18, 22 और 24 इंची बच्चे भी हैं.