जयपुर.हिंदी के प्रसिद्ध रचनाकार भारतेंदु हरिशचंद्र ने मातृभाषा के लिए कहा है, 'मातृभाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा दूर नहीं होती'. राजस्थान के लोगों को लंबे समय से मातृभाषा (राजस्थानी) को मान्यता का इंतजार है. यह इंतजार अब उनके दिल में शूल बनकर चुभने लगा है. आज जब दुनियाभर में मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है. प्रदेश के लोगों की यह पीड़ा खुलकर सामने आ गई है. दरअसल, हर साल 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. यूनेस्को ने विश्व में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के लिए 1999 में 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मानाने की स्वीकृति दी थी. लेकिन आठ करोड़ से अधिक आबादी वाले राजस्थान की पीड़ा यह है कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिलने से इसे वह हक नहीं मिल पाया है. जिसकी यह भाषा हकदार है.
पुरानी और समृद्ध भाषाओं में एक है राजस्थानी : राजस्थानी के प्रसिद्ध रचनाकार केसी मालू का कहना है, राजस्थानी सबसे पुरानी और सबसे समृद्ध भाषा है. हर तरह का साहित्य राजस्थानी भाषा में रचा गया है. वीर रस, शृंगार रस, वात्सल्य रस, भक्ति रस जैसे सभी रसों में रचनाओं का एक विपुल कोष है. जो साहित्य के हर मापदंड पर खरी उतरती हैं. पद्य, गद्य, उपन्यास, कहानी और वार्ता जैसी विधा में साहित्य रचना की गई है. फिर भी आज तक मान्यता की राह देख रहे हैं. यह हम सबके लिए सोचनीय विषय है.
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राजीनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, युवाओं का नुकसान : वे बोले, राजस्थानी को मान्यता नहीं मिलने का एक बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है. इसके चलते राजस्थान की युवा पीढ़ी को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. बहुत से युवा राजस्थानी पढ़ना चाहते हैं. लेकिन जब वे आगे भविष्य की तरफ नजर उठाते हैं तो सोचते हैं कि इसमें नौकरी की जगह नहीं है. जबकि राजस्थानी को मान्यता मिलने पर प्रदेश के लोगों को ज्यादा अवसर मिलेंगे.
सरकार नहीं सुने तो लोग आगे आएं : उन्होंने कहा, आज वोट मांगते समय सभी नेता राजस्थानी में बात करते हैं. पीएम मोदी भी जब राजस्थान आते हैं तो घणी खम्मा से संबोधन शुरू करते हैं. लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ती है. वे बोले, प्रदेश सरकार को राजस्थानी भाषा को पढ़ाई में शामिल करना चाहिए और द्वितीय भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए. इसके लिए संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की बाध्यता नहीं है. इच्छाशक्ति हो तो ऐसा किया जा सकता है. सरकार आगे नहीं आए तब तक प्रदेश के लोगों को इसका ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करने पर जोर देना चाहिए.
रोटी और रोजगार से जुड़ा है मुद्दा : साहित्यकार डॉ. भारत ओला का कहना है, राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा लंबे समय से अटका है. केंद्रीय साहित्य अकादमी, यूजीसी, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, आकाशवाणी-दूरदर्शन, भाषा की सभी अकादमियों ने राजस्थानी को मान्यता दे रखी है. सरकार को भी इसे आठवीं अनुसूची में जोड़ना चाहिए. अब तो डबल इंजन की सरकार है. केंद्र सरकार इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करे और प्रदेश की सरकार इसे द्वितीय भाषा के रूप में स्वीकृति दे. यह केवल साहित्यकारों की मांग नहीं है. बल्कि यह मुद्दा रोटी और रोजगार से जुड़ा है. यह संस्कृति, संस्कार और परंपराओं से जुड़ी मांग है.