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राजस्थान के ये 'वीर', जिन्होंने आजादी की लड़ाई में परिवार को भी किया था शामिल - Independence Day 2024 - INDEPENDENCE DAY 2024

Independence Day Special, आज देश 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. भारत का आज पूरी दुनिया में डंका बज रहा है, लेकिन इस आजादी को दिलाने में जिन लोगों का योगदान है, उन्हें कभी बुलाया नहीं जा सकता. आजादी के दीवानों की दीवानगी ऐसी भी थी कि कई स्वतंत्रता सेनानियों ने न केवल खुद, बल्कि अपने परिवार को भी देश की लड़ाई में शामिल कर दिया. जानिए ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवार के बारे में.

राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी
राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी (ETV Bharat Bikaner)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 15, 2024, 6:03 AM IST

राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानिए (ETV Bharat Bikaner)

बीकानेर : पूरे देश में आज स्वतंत्रता दिवस की खुशी और उल्लास का माहौल है. स्वाधीनता के 78 वर्ष बीतने के बाद आज भी आजादी के उन दीवानों की गाथाएं उस वक्त की याद दिलाती है, जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने देश को आजाद कराया. आज हम बात करेंगे ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों की जो न सिर्फ खुद अंग्रेजों के खिलाफ डटकर लड़ाई लड़ते रहे, बल्कि आजादी के आंदोलन को मजबूती देने के लिए अपने परिवार को भी देश के लिए समर्पित कर दिया.

राजस्थान के तीन परिवार :बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. नितिन गोयल कहते हैं कि बड़े संघर्ष के बाद हमें यह आजादी मिली और आज स्वतंत्रता सेनानियों के बूते ही हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं. वैसे तो आजादी के आंदोलन की कहानी के कई किरदार हैं और हजारों लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजाद कराया. इनमें राजस्थान के तीन स्वतंत्रता सेनानी भी थे, जो अपने परिवार के साथ आजादी के आंदोलन में डटे रहे.

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कोटा का बारहठ परिवार :गोयल कहते हैं कि कोटा के केसरी सिंह, जोरावर सिंह, प्रताप सिंह बारहठ और बाद में उनकी दोहिती नागेंद्र बाला बारहठ का परिवार पीढ़ियों से स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़े रहे. इसी तरह उदयपुर के स्वतंत्रता सेनानी माणिक्य लाल वर्मा के परिवार का एक अनूठा उदाहरण है. खुद वर्मा स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी रहे और जनजातीय क्षेत्र में लोगों के लिए बेहतर काम किया. इसके बाद उनकी पत्नी नारायणी देवी और बाद में उनकी पुत्री स्नेहलता भी आजादी के आंदोलन में कूद पड़ीं.

बहन और पुत्र के साथ किया मुकाबला :बीकानेर के वैद्य मघाराम ने अपने पुत्र रामनारायण शर्मा और बहन खेतू बाई ने आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया. आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत के समय 26 जनवरी को झंडारोहण किया जाता था और स्वतंत्रता सेनानी अपने घर के आगे देश प्रेम की अलख जगाने के लिए झंडारोहण करते थे, लेकिन उस वक्त वैद्य मघाराम और उनके पुत्र रामनारायण जेल में बंद थे. ऐसे में विद्या वैद्य मघाराम की पुत्री खेतू बाई ने न सिर्फ घर के आगे झंडारोहण किया बल्कि अंग्रेजों की पुलिस का झंडा हटाने पर डटकर मुकाबला भी किया.

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कम मिलते हैं ऐसे उदाहरण :गोयल कहते हैं कि निश्चित रूप से आजादी के आंदोलन में हर एक स्वतंत्रता सेनानी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अब अभिलेखागार इतिहास के पन्नों से इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी जुटाते हुए जनता तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है, ताकि आम लोगों को भी आजादी के इन रियल हीरो की कहानी पता चले. वह कहते हैं कि निश्चित रूप से राजस्थान के पूरे परिवार के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का मुकाबला करने के ऐसे बिरले ही उदाहरण हैं.

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