जोधपुर.उत्तरी भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बन गया है. इस प्रदूषण में सर्वाधिक हानिकारक तत्व है पार्टिकुलेट मैटर, जिससे लोगों को भारी परेशानी हो रही है. इसको लेकर आईआईटी जोधपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर की ओर से की गई शोध का पेपर 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है. शोध में पार्टिकुलेट मैटर (PM- Particulate Matter) के स्रोतों और संरचना पर तथ्यों को शामिल किया गया है. इसमें सीधे उत्सर्जित पीएम कण और वायुमंडल में बनने वाले पीएम कणों के बीच एक व्यापक स्पष्ट अंतर बताया गया है. वायु मंडल में पीएम बनना भी चिंता का विषय है. इसकी वजह भी वाहनों का धुआं, हाउस हीटिंग सहित अन्य मानव जनित कारण है.
शोध करने वाली सह आचार्य डॉ. दीपिका भट्टू ने कहा कि भारत के वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों के बीच सहयोग के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है. खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में निजात पाने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें. इसके लिए मुख्य रूप से ओवरलोड, पुराने वाहनों और अनाधिकृत जुगाड़ वाहनों को हटाना होगा. उल्लेखनीय है कि पार्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद वो महीन कण होते हैं जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता. यह रासायनिक और मेटल के होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.
दिल्ली और इंडो गंगा मैदानों में हुआ अध्ययन :यह शोध दिल्ली के अंदर और बाहर पांच इंडो-गंगा मैदानी स्थलों में हुआ है. इस दौरान पूरे क्षेत्र में समान रूप से उच्च पीएम सांद्रता मौजूद दिखी, लेकिन स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों और निर्माण प्रक्रियाओं के कारण रासायनिक संरचना में काफी भिन्नता नजर आई. दिल्ली के प्रदूषण में पाए गए पीएम जिनमें अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल पाया गया, वो सीधे वाहनों के धुंए, आवासीय हीटिंग और वायुमंडल में उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के ऑक्सीकरण से उत्पन्न होते हैं. इसके विपरीत, दिल्ली के बाहर के क्षेत्रों में पाए गए पीएम में अमोनियम सल्फेट और अमोनियम नाइट्रेट मोजूद है, जिसकी वजह बायोमास जलाना भी है.