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एक वर्ष तक पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं, तो तलाक का आदेश बरकरार रहेगा: हाईकोर्ट - Allahabad High Court Order

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि अगर एक वर्ष तक पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध नहीं होता है, तो तलाक का आदेश बरकरार रहेगा.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 13, 2024, 10:53 PM IST

Updated : Sep 13, 2024, 10:59 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 10 के तहत यदि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना या न्यायिक पृथक्करण के आदेश के बाद एक वर्ष में पति-पत्नी के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं होता है, तो पृथक्करण का आदेश बरकरार रखा जाएगा. न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा कि यदि निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर कोई शारीरिक संबंध नहीं होता है, तो प्रभावित पक्ष के लिए यह विकल्प खुला होता है कि वह निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर कोई शारीरिक संबंध न होने के कारण विवाह विच्छेद के लिए आवेदन कर सके.

न्यायालय ने पाया कि उस अवधि के दौरान, दोनों पक्षों के बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं हुआ था और इस प्रकार न्यायिक पृथक्करण का निर्णय उचित था. इस पर पत्नी की अपील खारिज कर दी गई. उरई, जालौन के मामले के तथ्यों के अनुसार पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने 2002 में उसे छोड़ दिया. पत्नी ने वैवाहिक संबंध पुनर्जीवित नहीं किया इसलिए उसने अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए कार्यवाही शुरू की. पत्नी ने प्रतिवाद दाखिल कर न्यायिक पृथक्करण की डिक्री मांगी. इसके बाद 2006 में पति द्वारा शुरू किए गए मामले को खारिज कर दिया गया और अधिनियम की धारा 10 के तहत अपीलार्थी पत्नी द्वारा मांगी गई न्यायिक पृथक्करण की डिक्री मंजूर कर ली गई.

इसके एक साल बाद पति ने दावा किया कि दोनों एकसाथ नहीं रहते थे जबकि पत्नी ने दावा किया कि दोनों साथ रहते थे. पति की बात पर विश्वास करते हुए ट्रायल कोर्ट ने दोनों पक्षों को तलाक का आदेश दे दिया, जिसे पत्नी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने माना था कि पति के इस कथन पर संदेह का कोई कारण नहीं था कि दोनों पक्ष एकसाथ नहीं रहते थे और इस प्रकार न्यायिक पृथक्करण के निर्णय से एक वर्ष के भीतर उनका विवाह पुनर्जीवित नहीं हुआ था. यह माना गया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि 11 मई 2006 के बाद किसी भी समय विवाह पुनर्जीवित हुआ था. इसके अलावा अधिनियम की धारा 13 (1ए) की प्रयोज्यता के संबंध में न्यायालय ने माना कि यह पक्षकारों के शारीरिक संबंध पर निर्भर होगा, जो स्पष्ट रूप से नहीं हुआ है.

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Last Updated : Sep 13, 2024, 10:59 PM IST

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