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हाईकोर्ट का आदेश, विवेचना में ठीक नहीं की जा सकती प्राथमिकी में की गई त्रुटि

कहा- प्राथमिकी में घटना की तिथि और समय का उल्लेख न होने को विवेचना के दौरान ठीक नहीं किया जा सकता.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली त्रुटि जैसे प्राथमिकी में घटना की तिथि और समय का उल्लेख न होने को विवेचना के दौरान ठीक नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने इस टिप्पणी के साथ चार्जशीट का संज्ञान लेने के सीजेएम मिर्जापुर के कार्य को बेहद चौंकाने वाला बताया. क्योंकि एफआईआर में घटना की तिथि, समय और गवाह जैसे महत्वपूर्ण विवरण नहीं थे.

हाईकोर्ट ने कहा कि सीजेएम ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण न होने के तथ्यों की अनदेखी करते हुए फिर से संज्ञान लिया जबकि एडीजे न्यायालय ने मामले को नए सिरे से तय करने के लिए मजिस्ट्रेट को भेज दिया था. मामले के तथ्यों के अनुसार जगत सिंह के मजिस्ट्रेट के एक अक्टूबर 2018 के आदेश को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनर्विचार दाखिल करने के बाद कोर्ट ने मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट को वापस भेज दिया था. जिन्होंने उस आरोप पत्र का संज्ञान लिया, जिसमें उक्त आवश्यक विवरण नहीं थे.

हाईकोर्ट ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण, विशेष रूप से तारीख और समय का अभाव पाए जाने पर कहा कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले इन कारकों पर विचार करना चाहिए. जगत सिंह के खिलाफ रास्ते के अधिकार को लेकर हुए विवाद के सिलसिले में आईपीसी की धारा 143, 341, 504 और 506 के तहत मिर्जापुर में प्राथमिकी दर्ज की गई. इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिस पर संबंधित मजिस्ट्रेट ने एक अक्टूबर 2018 को संज्ञान लिया. याची ने इस आदेश को पुनर्विचार याचिका में चुनौती दी, जिसे एडीजे मिर्जापुर ने 20 जुलाई 2022 को स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज दिया. हालांकि सीजेएम ने एक दिसंबर 2023 को फिर से संज्ञान लिया, जिसे फिर से एडीजे कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई. इस बार उनकी चुनौती खारिज कर दी गई और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की गई.

एडीजे न्यायालय के आदेश और सीजेएम के संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका की गई. कहा गया कि प्राथमिकी में आवश्यक विवरण जैसे कि विशिष्ट तिथि, समय और गवाहों का अभाव है, जो सीआरपीसी की धारा 154 के तहत प्रस्तुत किसी भी जानकारी के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसके बावजूद यह तर्क दिया गया कि सीजेएम ने यंत्रवत संज्ञान लिया और पुनर्विचार न्यायालय ने भी इस आदेश की गलत पुष्टि की है.

हाईकोर्ट ने दोनों आदेशों को अत्यधिक अवैध और गलत पाते हुए पूरे मामले की कार्यवाही को अलग रखते हुए याचिका मंजूर कर ली. कोर्ट ने विपक्षी संख्या दो को घटना के बारे में जानकारी होने की तिथि और समय के साथ अपनी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष करने की छूट दी है.

यह भी पढ़ें : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- बिना कारण आदेश नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन, बेदखली का आदेश रद्द

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली त्रुटि जैसे प्राथमिकी में घटना की तिथि और समय का उल्लेख न होने को विवेचना के दौरान ठीक नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने इस टिप्पणी के साथ चार्जशीट का संज्ञान लेने के सीजेएम मिर्जापुर के कार्य को बेहद चौंकाने वाला बताया. क्योंकि एफआईआर में घटना की तिथि, समय और गवाह जैसे महत्वपूर्ण विवरण नहीं थे.

हाईकोर्ट ने कहा कि सीजेएम ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण न होने के तथ्यों की अनदेखी करते हुए फिर से संज्ञान लिया जबकि एडीजे न्यायालय ने मामले को नए सिरे से तय करने के लिए मजिस्ट्रेट को भेज दिया था. मामले के तथ्यों के अनुसार जगत सिंह के मजिस्ट्रेट के एक अक्टूबर 2018 के आदेश को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनर्विचार दाखिल करने के बाद कोर्ट ने मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट को वापस भेज दिया था. जिन्होंने उस आरोप पत्र का संज्ञान लिया, जिसमें उक्त आवश्यक विवरण नहीं थे.

हाईकोर्ट ने एफआईआर में महत्वपूर्ण विवरण, विशेष रूप से तारीख और समय का अभाव पाए जाने पर कहा कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले इन कारकों पर विचार करना चाहिए. जगत सिंह के खिलाफ रास्ते के अधिकार को लेकर हुए विवाद के सिलसिले में आईपीसी की धारा 143, 341, 504 और 506 के तहत मिर्जापुर में प्राथमिकी दर्ज की गई. इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिस पर संबंधित मजिस्ट्रेट ने एक अक्टूबर 2018 को संज्ञान लिया. याची ने इस आदेश को पुनर्विचार याचिका में चुनौती दी, जिसे एडीजे मिर्जापुर ने 20 जुलाई 2022 को स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज दिया. हालांकि सीजेएम ने एक दिसंबर 2023 को फिर से संज्ञान लिया, जिसे फिर से एडीजे कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई. इस बार उनकी चुनौती खारिज कर दी गई और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की गई.

एडीजे न्यायालय के आदेश और सीजेएम के संज्ञान लेने के आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका की गई. कहा गया कि प्राथमिकी में आवश्यक विवरण जैसे कि विशिष्ट तिथि, समय और गवाहों का अभाव है, जो सीआरपीसी की धारा 154 के तहत प्रस्तुत किसी भी जानकारी के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसके बावजूद यह तर्क दिया गया कि सीजेएम ने यंत्रवत संज्ञान लिया और पुनर्विचार न्यायालय ने भी इस आदेश की गलत पुष्टि की है.

हाईकोर्ट ने दोनों आदेशों को अत्यधिक अवैध और गलत पाते हुए पूरे मामले की कार्यवाही को अलग रखते हुए याचिका मंजूर कर ली. कोर्ट ने विपक्षी संख्या दो को घटना के बारे में जानकारी होने की तिथि और समय के साथ अपनी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष करने की छूट दी है.

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