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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 4 hours ago

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उत्तराखंड और अमेरिका के जंगलों की आग बुझाएगा यूपी, इस तकनीक से रुकेगी तबाही, कारों को मिलेगा ईंधन - Production Of Green Hydrogen

उत्तराखंड से लेकर अमेरिका तक के जंगलों में लगने वाली आग का निदान उत्तर प्रदेश में होगा. IIT BHU के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रीतम सिंह ने इसका निदान निकालने का दावा किया है.

मिर्जापुर में अमेरिका से लाई गई लकड़ी से हो रहा हाइड्रोजन.
मिर्जापुर में अमेरिका से लाई गई लकड़ी से हो रहा हाइड्रोजन. (Photo Credit; ETV Bharat)

लखनऊ : उत्तराखंड से लेकर अमेरिका तक के जंगलों में लगने वाली आग का निदान उत्तर प्रदेश में होगा. IIT BHU के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रीतम सिंह ने इसका निदान निकालने का दावा किया है. मिर्जापुर में इस संबंध में लगाए गए प्लांट के जरिए जंगल की गिरी हुई खराब लकड़ी का ट्रीटमेंट करके इससे ग्रीन हाइड्रोजन बनाई जा रही है. जिससे भविष्य में कारें भी चलेगी. जंगल की ऐसी लकड़ी जिसमें गोंद उत्पन्न होने लगता है, माना जाता है कि इस लकड़ी में सबसे अधिक आग लगती है.इसलिए इस लकड़ी का जंगल से हट जाना नितांत आवश्यक है. यही लकड़ी हाइड्रोजन निर्माण के लिए मुफीद है.

मिर्जापुर में अमेरिका से लाई गई लकड़ी से हो रहा हाइड्रोजन. (Video Credit; ETV Bharat)

अमेरिका से लाई लकड़ी से बना रहे बायो हाइड्रोजन:अमेरिका के सिनसिनाटी से आई हुई लकड़ी से फिलहाल मिर्जापुर में बायो हाइड्रोजन का निर्माण किया जा रहा है. यह प्रोजेक्ट मिर्जापुर के चुनार में पिछले तीन साल से चल रहा है. उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास विभाग की ओर से यह प्लांट प्रदेश में पॉलिसी में निजी निवेश की नीति के तहत लगाया गया है. जिसमें आईआईटी BHU की तकनीक को लागू किया गया है. देश का पहला बायोमास हाइड्रोजन प्लांट अरण्यक फ़्यूल एंड पावर लिमिटेड उत्तर प्रदेश की ओर से लगाया गया है. पायलट प्रोजेक्ट के दौर से निकलकर अब यह प्लांट 1 टन हाइड्रोजन रोजाना उत्पादन करने के लिए तैयार है. खेती, जंगल और शहरों से निकलने वाले जैविक कूड़े यानी बायोमास से ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की तैयारी वैज्ञानिक शुरू कर चुके हैं. उनका मानना है कि भविष्य में ऊर्जा के स्थायित्व और क्लाइमेट चेंज पर नियंत्रण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसी की होगी.

भविष्य ग्रीन हाइड्रोजन का:नोबेल सम्मान से सम्मानित अमेरिका के प्रो. जॉन बी गुडनफ की देखरेख में शोध करने वाले IIT, BHU के वैज्ञानिक डॉ. प्रीतम सिंह का दावा है कि भविष्य ग्रीन हाइड्रोजन का ही है. सरकार को इससे जुड़े इनोवेशन, बेसिक रिसर्च और रिसर्च एंड पर ठीक से ध्यान देना होगा. अगर हाइड्रोजन का उत्पादन ऊर्जा के ऐसे स्रोत से हो रहा है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन नहीं होता तो उसे हम ग्रीन हाइड्रोजन कहते हैं.

इस तकनीक का होता है इस्तेमाल:डॉ. प्रीतम सिंह ने बताया कि मिर्जापुर में शुरू किए गए हाइड्रोजन प्लांट में टैड तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसमें बेहद ऊंचे तापमान पर ऑक्सीजन की गैर-मौजूदगी में जंगलों की लकड़ी का विखंडन होता है. इससे हाइड्रोजन, मीथेन, कोयला, जलवाष्य और कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है. टैड रिएक्टर के भीतर कैटलिस्ट या उत्प्रेरक जलवाष्प और कार्बन मोनोऑक्साइड के रिएक्शन से अतिरिक्त हाइड्रोजन व कार्तन डाइऑक्साइड पैदा होती है. जिसमें निकलने वाला कोयला भी धुंआ रहित होता है. उन्होंने बताया कि ऊर्जा के लिए खेती, जंगल और फसलों से निकले अपशिष्ट हों या फिर एनिमल वेस्ट उपयुक्त होते हैं हालांकि, जो ऊंचे पहाड़ों पर लगने वाले देवदार जैसे पेड़ों से निकले फलों के अवशेष होते हैं, उन्हें हम बेहतर मानते हैं क्योंकि ऊंचाई पर होने के कारण उनमें हाइड्रोजन तत्व ज्यादा होता हैं.

जंगल की आग से पर्यावरण पर संकट:डॉ. प्रीतम सिंह ने बताया कि अमेरिका से लेकर भारत तक जंगल की आग एक बहुत बड़ा संकट है, जो पूरी तरह से हमारे पर्यावरण पर बुरा असर डाल रहा है. इसके साथ ही हमारे वन्य जीवों के लिए भी यह संकट का विषय बना हुआ है. उत्तराखंड में जब गर्मी में आग लगती है तो पर्यटन पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. हम इसी लकड़ी से हाइड्रोजन बनाकर इसका निदान कर सकते हैं. लकड़ी बिनने के काम में हम स्थानीय मजदूरों को लगाएंगे जिस रोजगार सृजन होगा. उन्होंने बताया कि बायो मास से ग्रीन हाइड्रोजन वनाने के कई फायदे हैं. इससे हाइड्रोजन तो निकलती ही है, साथ ही खाद, राख, टार, कोयला और फूड ग्रेड की कार्बन डाइऑक्साइड भी मिलती है. फूड ग्रेड कार्बन का इस्तेमाल खाने-पीने की चीजों और उनके रखरखाव में किया जाता है. इसके अलावा इलेक्ट्रोलाइजर पानी से हाइड्रोजन बनाने के मुकावले बायोमास से हाइड्रोजन बनाना सस्ता भी है. पानी से एक किलो हाइड्रोजन वनाने 55 किलोवाट बिजली लगती है, जबकि बायोमास से इतनी हाइड्रोजन 29 किलोवाट में बन जाती है.

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