शिमला: तलाक से जुड़े मामलों में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने व्यवस्था देते हुए कहा कि जब कोई पक्ष अदालत के समक्ष क्रूरता व परित्याग के आरोप लेकर आता है, तो उन्हें साबित करना उसी पक्ष की जिम्मेदारी है. न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने इस व्यवस्था के साथ ही तलाक के लिए गुहार लगाने वाले प्रार्थी पति की याचिका को खारिज कर दिया.
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि प्रार्थी पति ऐसे कोई भी सबूत अथवा गवाह पेश नहीं कर पाया, जिससे यह साबित होता हो कि उसकी पत्नी ने उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया और उसे छोड़ कर चली गई. अदालत ने तलाक से जुड़े मामले में कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-13 के तहत दाखिल याचिका में यदि क्रूरता और परित्याग के आरोप लगाए गए हैं तो उन्हें साबित करने का दायित्व भी आरोप लगाने वाले पर ही होता है.
क्या है मामला:मामले के अनुसार याचिकाकर्ता पति ने पत्नी पर उसके साथ क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करते हुए पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि दोनों का विवाह 20 जनवरी 1991 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. उनके दो बच्चे हैं. तलाक याचिका दायर करने के समय दोनों बच्चों में से एक याचिकाकर्ता के साथ और दूसरा प्रतिवादी के साथ रहने लगा. याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रतिवादी पत्नी ने शादी के चार साल बाद उसे छोड़ दिया. साथ ही आरोप लगाया कि पत्नी उसके और सास-ससुर के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी.
आरोप था कि वह याचिकाकर्ता को उसके रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने अपमानित करती थी. उसने विभिन्न अधिकारियों के समक्ष उसके खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज करवाई और उसे आधारहीन मामलों में घसीटा. आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी पत्नी ने याचिकाकर्ता को खुलेआम धमकी दी कि वह उसे और उसके माता-पिता को खत्म कर देगी. याचिकाकर्ता का कहना था कि सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए वह पत्नी की इस क्रूरता को सहन करता रहा, लेकिन उसने अपने तौर-तरीके नहीं बदले.