वाराणसी: हर लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही उन तमाम मुद्दों पर चर्चा भी आम हो जाती है, जो पूरे 5 साल तक अछूते रहते हैं. ऐसे मुद्दों को लेकर पक्ष विपक्ष दोनों के अपने-अपने तर्क होते हैं, लेकिन अब तो मुद्दों से अलग सिर्फ एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति ही हावी हो रही है.
जिसकी वजह से शायद ऐसे मुद्दे पिछड़ते जा रहे हैं, जिन पर चर्चा करने की सच में जरूरत है और ऐसा ही एक मुद्दा है बनारसी साड़ी का. लंबे वक्त से बनारसी साड़ी कारोबार को लेकर कभी मंदी तो कभी तेजी की बात कही जाती रही है.
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से सांसद बनने के बाद बनारस की साड़ी के लिए प्रयास अपने स्तर पर काफी लंबे चौड़े हुए, बनारस के बुनकरों को सस्ती बिजली देने के दावे के साथ ही, चीनी रेशम पर रोक लगाने के साथ ही यहां पर पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल जैसे तमाम उपहार दिए गए उम्मीद थी कि बनारस के बुनकरों की तकदीर और बनारसी साड़ी कारोबार की तस्वीर दोनों बदल जाएगी.
लेकिन, क्या सच में 2014 के बाद स्थिति बदली इन्हीं सवालों का जवाब बनारस की उन तंग गलियों में तलाशने के लिए हम निकल पड़े. जहां बनारसी साड़ी कारोबार की मैन्युफैक्चरिंग के लिए चलने वाले हथकरघों की खटर-पटर बनारसी साड़ी उद्योग को जीवित रखे हुई है.
वाराणसी की इकोनॉमी बनारसी साड़ी कारोबार पर बहुत हद तक निर्भर रही है. हालांकि, अब श्री काशी विश्वनाथ धाम ने बनारस के पर्यटन कारोबार को एक नई संजीवनी दी है और पर्यटन की वजह से बनारस के आर्थिक रूप से मजबूत होने के कई रास्ते उजागर हो गए हैं.
पर्यटन कारोबार में आए बूम की वजह से 34 फीसदी रोजगार की वृद्धि भी दर्ज हुई है. यह आंकड़े सरकारी है एयरपोर्ट से लेकर रेलवे और सड़क मार्ग से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक हर सेक्टर पर काम तेजी से हो रहा है और बदलाव भी नजर आ रहा है.
शायद यही वजह है कि 2 सालों में काशी में 13 करोड़ से भी ज्यादा पर्यटक विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन कर चुके हैं. श्री काशी विश्वनाथ धाम ने बनारस की इकोनॉमी को नहीं गति दी है और रेवेन्यू में भी 65% तक का इजाफा हुआ.
इन सब के बीच सवाल बड़ा है कि क्या बनारसी साड़ी कारोबार इस तेजी से मालामाल हो रहा है? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए जब हमने बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े कई पीढियां के व्यापारी अशोक धवन से बातचीत की तो उन्होंने अपनी बातें रखीं.
अशोक धवन वर्तमान में बीजेपी से एमएलसी भी हैं और बनारसी साड़ी वस्त्र उद्योग संघ के संरक्षक भी हैं. अशोक धवन का कहना है कि 2013 के बाद वाराणसी साड़ी कारोबार में एक बूम जरूर आया. इसकी बड़ी वजह थी बनारसी साड़ी का प्रमोशन फिल्मों से लेकर बड़े-बड़े उद्योग घरानों में बनारसी साड़ी की डिमांड बढ़ती गई. जिसकी वजह से बनारसी साड़ी के प्रति लोगों का रुझान तेजी से दिखाई देने लगा.
बनारस के तमाम इलाके जो बुनकरों के लिए जाने जाते हैं. उनमें हथकरघे की खटर-पटर निश्चित तौर पर बुनकरों को एक सुकून देने वाली साबित हो रही थी. 2020-21 तक तो सब कुछ बहुत अच्छे से चला, लेकिन अचानक से फिर मंडी का दौर देखने को मिलने लगा, अभी तो 3 महीने से हालात ऐसे हैं कि बनारसी साड़ी का पूरा कारोबार जबरदस्त मंदी की चपेट में है.
बुनकरों के पास काम नहीं है और बनारसी साड़ी कारोबारी के पास बिल्कुल भी ग्राहक नहीं है. बनारस में आने वाले पर्यटकों में से 10% भी बनारसी साड़ी की तरफ नहीं आ पा रहे हैं. जिसकी वजह से बनारसी साड़ी कारोबार एक बार फिर से बदहाली की स्थिति की तरफ जा रहा है.
अशोक धवन का कहना है कि स्थिति बदलना बेहद जरूरी है' क्योंकि ना ही बुनकरों का पलायन रुक रहा है और ना ही युवा पीढ़ी इस तरफ आना चाह रही है. बनारसी साड़ी की असली पहचान पावर लूम नहीं बल्कि हथकरघे हैं.