मुंगेर: पूरे देश में होली का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है. होली बिहार के भी मुख्य त्योहारों में से एक है. लोग बड़े चाव से एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं, और घर पर पकवान बना कर उसका लुत्फ उठाते हैं. लेकिन यही होली मुंगेर जिले के इस गांव में किसी अभीशाप से कम नहीं है. यहां अगर किसी ने होली मनाने की कोशिश भी की, तो वह तबाह हो जाता है.
यहां होली मनाना ग्रामीणों के लिए अभिशाप: मुंगेर जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर असरगंज प्रखंड क्षेत्र के साजुआ, सती स्थान गांव में होली मनाना पाप करने के बारबर माना जाता है. गांव में करीब 150 घर हैं, जिनमें लगभग 700 लोग रहते हैं, लेकिन कोई भी होली नहीं मनाता है. यहां के लोग ना तो रंग खेलते हैं, ना गुलाल लगाते हैं और ना ही पकवान बनाकर होली की खुशियां मनाते हैं.
होली मनाने पर टूटता है संकट का पहाड़:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां के लोगों का मानना है कि होली मनाने से गांव में विपदा आती है, इसलिए यहां रहने वाले लोग रंगों के त्योहार से दूर रहते हैं. मान्यता है कि पूरे फागुन मास में इस गांव के किसी घर में अगर पुआ या कढ़ाई में छानने वाला कोई पकवान बनता है, या बनाने की कोशिश की जाती है तो उस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है. इस गांव को लोग सती स्थान गांव भी कहते हैं.
क्या है पौराणिक मान्यता?: जब इस बारे में यहां के ग्रामीण गोपाल सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि लगभग 200 साल पहले इसी गांव में सती नाम की एक महिला के पति का होलिका दहन के दिन निधन हो गया था. कहा जाता है कि सती अपने पति के साथ जल कर सती होने की जिद करने लगी, लेकिन ग्रामीणों ने उसे इस बात की इजाजत नहीं दी.
पति-पत्नी की एक साथ जली चिता: जिसके बाद सती अपनी जिद पर अड़ी रही. लोग उसे एक कमरे में बंद कर उसके पति के शव को शमशान घाट ले जाने लगे, लेकिन शव बार-बार अर्थी से नीचे गिर जाता था. गांव वालों ने जब पत्नी को घर का दरवाजा खोल कर निकाला तो पत्नी दौड़कर पति के अर्थी के पास पहुंची और अपने पति के साथ जल कर सती होने की इच्छा जताई. जिसके बाद गांव वालों ने गांव में ही चिता तैयार कर दी, तभी अचानक पत्नी के हाथों की सबसे छोटी उंगली से अचानक आग निकलती है और उसी आग में पति-पत्नी साथ-साथ जल जाते हैं.