गया :विजयदशमी की रात को शहर गया की पांच बड़ी मूर्ति दुःखहरणी मंदिर जमा मस्जिद के रास्ते से विसर्जन के लिए जाती है, जामा मस्जिद और दुःखहरणी मंदिर से होते हुए पांच मूर्तियों के जाने का इतिहास लगभग 100 वर्ष से अधिक है. बताया जाता है कि 1917-18 में इस रास्ते से विसर्जन जुलूस जाना शुरू हुआ था.
100 साल पुराना है इतिहास: सबसे पहले इस रास्ते से मुरारपुर के निवासी मैना पंडित ने मूर्ति जुलूस निकाला था. कोतवाली थाना क्षेत्र के सराय रोड स्थित दुःखहरणी मंदिर और जमा मस्जिद की दीवारें एक दूसरे से सटी हुई हैं. यहां पूर्व में विसर्जन जुलूस के दौरान विवाद भी दो समुदाय के बीच हो चुका है. इसी कारण जिला प्रशासन के द्वारा दुर्गा पूजा के अवसर पर इस क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया जाता है.
अंग्रेजों के जमाने से निकल रहा जुलूस: दुःखहरणी मंदिर के महंत श्री चंद्र भूषण मिश्रा ने बताया की दुःखहरणी मंदिर द्वार से जामा मस्जिद होते हुए अंग्रेजी शासन के समय से विसर्जन जुलूस निकाला जा रहा है, लगभग 70 वर्ष पहले विसर्जन जुलूस के संबंध में दो पक्षों के दरम्यान विवाद भी हुआ और इस कारण एक साल मूर्ति जुलूस नहीं निकाला गया. 1 वर्ष तक मूर्ति रखी रही, सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जिला पदाधिकारी को शांतिपूर्वक जुलूस निकालने के लिए लाइसेंस निर्गत करने का आदेश दिया, तब से लगातार हर वर्ष मूर्ति जुलूस निकल रहा है.
विवाद के बाद समय में हुआ था परिवर्तन: दुःखहरणी मंदिर द्वारा जामा मस्जिद के गेट से होते हुए मूर्ति विसर्जन जुलूस जाने की शुरुआत अंग्रेजी शासन के समय से हुआ था. पहले जिस समय रावण वध होता था, इस समय यहां से मूर्ति जुलूस निकाला जाता था. पहले 6:30 बजे संध्या से मूर्ति विसर्जन जुलूस निकालने का समय था, परंतु जब विवाद हुआ तो उस समय के तत्कालीन जिला पदाधिकारी पीपी शर्मा ने दोनों पक्षों से संवाद किया, इसमें दुःखहरणी मंदिर के महंत जी और जमा मस्जिद के इमाम साहब भी थे, दोनों पक्षों के आपसी सहमति से जुलूस के समय में परिवर्तन किया गया और उसी समय से जुलूस का समय रात्रि 9:00 बजे से लेकर रात्रि 1:00 बजे तक हो गया.
डीएम ने खुद उठाया था मां दुर्गा की प्रतिमा : दुःखहरणी मंदिर के महंत जी ने कहा की समय में परिवर्तन को लेकर जब दो पक्षों के दरमियान विवाद हुआ और एक पक्ष इसको लेकर टावर चौक के पास धरने पर बैठ गया, तभी उस वक्त के डीएम खुद वहां पहुंचे और विरोध कर रहे पक्ष से बात की, शासन प्रशासन ने यह भी आदेश दिया था कि मां दुर्गा की प्रतिमा गाड़ियों पर रखकर जुलूस ले जाया जाए, जिस पर एक पक्ष की सहमति नहीं हुई और मूर्तियां रखी रहीं, तभी डीएम ने प्रतिमा को अपने कंधे पर उठाकर आगे बढ़े, आज भी मां दुर्गा की प्रतिमा श्रद्धालु अपने कंधे पर उठाकर पार करते हैं.