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सरंगपाल मंदिर की महिमा अपरंपार, बैलगाड़ी से नहीं हिला शिवलिंग टूटे पहिए, महानदी तट पर हुई स्थापना - कुबेर सिंह चौहान

Glory Of Sarangpal Shivalinga कांकेर जिले के सरंगपाल में ऐतिहासिक शिव मंदिर है. ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग त्रिवेणी संगम से निकला.इसके बाद शिवलिंग को ले जाने की कोशिश हुई.जब बात नहीं बनीं तो शिवलिंग को सरंगपाल में ही नदी के तट पर स्थापित कर दिया गया.

Glory Of Sarangpal Shivalinga
सरंगपाल मंदिर की महिमा अपरंपार

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Mar 6, 2024, 5:43 PM IST

Updated : Mar 6, 2024, 11:28 PM IST

सरंगपाल मंदिर की महिमा अपरंपार

कांकेर :छत्तीसगढ़ की महानदी को प्रदेश की जीवनरेखा कहा जाता है.इस ऐतिहासिक नदी के तटीय क्षेत्रों में पुरातनकालीन संस्कृति बिखरी पड़ी है. कांकेर जिले में भी सरंगपाल महानदी के तट पर ऐसा ही प्राचीन शिवमंदिर है. इस मंदिर से जुड़ा इतिहास काफी पुराना है. कहा जाता है कि भगवान शिव ने महानदी के तट पर दर्शन दिए थे. जिस जगह शिव ने दर्शन दिए वहां आज भव्य मंदिर बन चुका है.इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं.इस मंदिर में साल में दो बार मेला लगता है.जहां देवी देवताओं की टोली इकट्ठा होती है.

सरंगपाल मंदिर की महिमा :जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर एक गांव सरंगपाल है.ये गांव महानदी के तट पर बसा हुआ है.इसी गांव में नदी के तट पर एक प्राचीन शिवमंदिर है. स्थानीय जानकारों के मुताबिक मंदिर की स्थापना साल 1941 में हुई थी. लेकिन इससे पहले कांकेर रियासत में मंत्री बाबू कुबेर सिंह चौहान की नजर नदी के तट पर पड़े एक शिवलिंग पर पड़ी.

एक-एक करके टूटे बैलगाड़ी के पहिए : कुबेर सिंह चौहान शिवलिंग को अपने गांव साल्हेटोल ले जाना चाहते थे.इसके लिए एक बैलगाड़ी मंगवाई गई. कुबेर सिंह चौहान ने शिवलिंग के साथ एक गणेश की मूर्ति भी बैलगाड़ी में रखवाई.लेकिन ये बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ सकी.कुछ देर बाद बैलगाड़ी के दोनों पहिए टूट गए. इसके बाद गांव वालों ने ग्राम देवता से इस बारे में पूछा. गांव वालों ने राजा को बताया कि शिवलिंग नदी के उस पार नहीं जाना चाहता.इसलिए राजा ने उसी जगह पर मंदिर बनवाकर शिवलिंग समेत मूर्तियों की स्थापना कर दी.ग्रामीण आज भी उस समय का इतिहास बताकर हर्षित हो जाते हैं.

''महानदी त्रिवेणी संगम पर हटकुल नदी,दूध नदी, और महानदी एक साथ मिलती हैं. साल्हेटोला गांव में राजा के परिवार के सदस्य रहते थे. जब उन्हें पता चला कि त्रिवेणी संगम में शिवलिंग निकला है,तो उसे ले जाने की कोशिश की गई.लेकिन शिवलिंग बैलगाड़ी में रखते ही पहिए टूट जाते.इसलिए यहीं मंदिर बनवा दिया गया.'' गयाराम देवांगन, मंदिर के जानकार

इस मंदिर में आज भी राजा के परिवार के सदस्य पहले पूजा करते हैं.परिवार से जुड़े सदस्य शिवलिंग में जलाभिषेक करते हैं. शिवरात्रि के दिन आसपास के गांवों से लोग यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.ग्रामीण त्रिवेणी संगम पर डूबकी लगाने के बाद शिव से मन्नत मांगते हैं.

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Last Updated : Mar 6, 2024, 11:28 PM IST

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