शिमला: कमाऊ पूत और वो भी 200 करोड़ सालाना का, उस पर भला हिमाचल अपना हक कैसे छोड़ सकता है. मंडी जिले के जोगिंदर नगर में स्थित शानन पावर प्रोजेक्ट की 99 साल की लीज मार्च 2024 में खत्म हो चुकी है. अब ये प्रोजेक्ट पंजाब सरकार को हिमाचल को सौंपना है, लेकिन पड़ोसी राज्य ने इसमें कानूनी अड़ंगा लगाया हुआ है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. अब इस मामले में नए साल में जनवरी में सुनवाई होगी.
1925 में हुआ था लीज एग्रीमेंट
वर्ष 1925 में अंग्रेजी हुकूमत के समय मंडी के राजा व तत्कालीन अंग्रेज सरकार के बीच समझौता हुआ था. ये प्रोजेक्ट 99 साल की लीज पर था और पंजाब इसे संचालित करता था. ये लीज मार्च 2024 में खत्म हो गई है. हिमाचल सरकार अपना हक पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई है. अब पंजाब के साथ पड़ोसी राज्य हरियाणा ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इस मामले में उसे भी सुना जाए. हरियाणा का तर्क है कि वो भी पंजाब पुनर्गठन एक्ट का हिस्सा रहा है. ऐसे में उसका भी इस मामले में पक्ष सुना जाए. सुप्रीम कोर्ट में अब सुनवाई नए साल में यानी वर्ष 2025 में जनवरी के पहले पखवाड़े में संभावित है.
खैर, यहां हम अदालती सुनवाई से अलग हिमाचल की तरफ से अपने हक के लिए की गई तैयारी और पड़ोसियों के अड़ंगों की पड़ताल पर फोकस करेंगे. हिमाचल सरकार सुप्रीम कोर्ट से आग्रह कर रही है कि शानन प्रोजेक्ट पर उसका हक दिलवाया जाए. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू इस मामले में पूर्व में हरियाणा के सीएम और वर्तमान में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर से मिलकर अपना पक्ष रख चुके हैं. केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस मामले में हिमाचल को भरोसा दिलाया है कि केंद्र तटस्थ रहेगा. अब पंजाब व हरियाणा क्या चाहते हैं और किस तरह से मामले को उलझाने की कोशिश कर रहे हैं, ये देखना भी जरूरी है. सबसे पहले निम्नलिखित बॉक्स में संक्षिप्त रूप में शानन प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि पर बात करते हैं.
क्या है लीज एग्रीमेंट ?
मंडी जिले के जोगिंदर नगर में स्थापित शानन प्रोजेक्ट स्वतंत्रता पूर्व का है. अंग्रेजी राज के समय रियासत मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने शानन बिजलीघर के लिए जमीन मुहैया करवाई थी. उस समय हुए समझौते के अनुसार लीज की अवधि 99 साल तय की गई थी. ये वर्ष 1925 की बात है. यानी 99 साल पूरे होने पर ये बिजलीघर उस धरती (मंडी रियासत के तहत जमीन) की सरकार को मिलना था, जहां पर ये स्थापित किया गया था. वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ तो उस समय हिमाचल प्रदेश पंजाब का ही हिस्सा था. ये बात अलग है कि हिमाचल का गठन पहली अप्रैल 1948 को हुआ था, लेकिन इसे पूर्ण राज्य का दर्जा वर्ष 1971 में मिला था. उस समय पंजाब पुनर्गठन एक्ट के दौरान शानन पावर हाउस पंजाब सरकार के स्वामित्व में ही रहा. पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 की शर्तों के मुताबिक इस बिजली प्रोजेक्ट को सिर्फ प्रबंधन के लिए पंजाब सरकार को हस्तांतरित किया गया था. ऊहल नदी पर स्थापित शानन पावर हाउस वर्ष 1932 में केवल 48 मेगावाट क्षमता का था. बाद में पंजाब बिजली बोर्ड ने इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया. बिजलीघर शुरू होने के पचास साल बाद वर्ष 1982 में शानन पावर प्रोजेक्ट 60 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन वाला हो गया. अब इसकी क्षमता पचास मेगावाट अतिरिक्त बढ़ाई गई है और ये अब कुल 110 मेगावाट का प्रोजेक्ट है.
सितंबर 2023 में पंजाब को नोटिस
चूंकि पंजाब सरकार इस कमाऊ पूत को हाथ से नहीं जाने देना चाहती, लिहाजा लीज की अवधि पूरी होने पर पंजाब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट चला गया. पंजाब सरकार ने प्रोजेक्ट को अपने ही स्वामित्व में रखने को लेकर याचिका दाखिल की. फिर, हिमाचल सरकार ने भी आवेदन दाखिल कर पंजाब सरकार की याचिका की मेंटेनेबिलिटी पर सवाल उठाया. इस पर सितंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया. वहीं, हिमाचल सरकार ने अपने आवेदन में कहा है कि पंजाब सरकार की तरफ से दाखिल किया गया सूट कानूनन सही नहीं है और न ही मेंटेनेबल है. अंग्रेजी शासन में ये परियोजना जिस भूमि पर बनी है, वो हिमाचल में है. उस समय समझौता दो पार्टियों के बीच हुआ था. लीज अवधि के उस समझौते को चैलेंज नहीं किया जा सकता. पंजाब सरकार कभी भी भूमि की लीज के समझौते की पार्टी नहीं थी. ऐसे में परियोजना की भूमि के वास्तविक मालिक के खिलाफ पंजाब सरकार का ये कानूनी प्रयास सही नहीं है. हिमाचल सरकार के एडवोकेट जनरल अनूप रतन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया हिमाचल के आवेदन को सही माना है. एडवोकेट जनरल के अनुसार आर्टिकल 131 के तहत यदि दो पक्षों के बीच कोई संधि हुई हो तो उसके खिलाफ कानूनन कोई भी मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में नहीं चलाया जा सकता है.