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हिमाचल सरकार को बड़ा झटका, वाटर सेस कानून को असंवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट ने किया रद्द - water cess is unconstitutional

Himachal Pradesh High Court on Water Cess: वाटर सेस के मामले में हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सरकार को हाइकोर्ट से झटका लगा है. हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने वाटर सेस को असंवैधानिक करार दिया है. जानें क्या है पूरा मामला ?

Himachal Pradesh High Court on Water Cess
Himachal Pradesh High Court on Water Cess

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Mar 5, 2024, 1:34 PM IST

Updated : Mar 5, 2024, 5:27 PM IST

हिमाचल सरकार को वाटर सेस के मामले में हाइकोर्ट से झटका

शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार को वाटर सेस कानून के मामले में हाईकोर्ट से झटका लगा है. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे कानून को बनाने का हिमाचल विधानसभा के पास संवैधानिक अधिकार नहीं है. इस तरह हिमाचल सरकार की तरफ से वाटर सेस कानून को लेकर जारी की गई अधिसूचना भी रद्द मानी जाएगी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने मंगलवार को ये आदेश जारी किए.

उल्लेखनीय है कि इस कानून को हाइड्रो पावर कंपनियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कंपनियों की तरफ से एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने केस की पैरवी की. दिलचस्प बात ये है कि मनु सिंघवी हिमाचल में कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार थे और वे ही हिमाचल की सुखविंदर सरकार के सबसे महत्वाकांक्षी रेवेन्यू जेनरेटर स्टेप के खिलाफ हाईकोर्ट में कंपनियों के पक्ष में खड़े थे. खैर, हाईकोर्ट के ताजा आदेश के अनुसार अब हिमाचल सरकार आगे वाटर सेस वसूल नहीं कर पाएगी. संभवत, राज्य सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

कंपनियों ने दी थी हाइकोर्ट में चुनौती

गौरतलब है कि सत्ता में आने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राजस्व बढ़ाने के लिए नदियों के पानी पर स्थापित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स पर वाटर सेस लगाने का विचार बनाया था. इससे सरकार ने प्रति वर्ष कम से कम एक हजार करोड़ रुपए रेवेन्यू जुटाने का लक्ष्य रखा था. वाटर कमीशन भी बना दिया गया था और कई कंपनियों से वाटर सेस भी वसूल लिया गया था. हालांकि कंपनियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन वाटर कमीशन भी सक्रिय रूप से काम कर रहा था. सतलुज जलविद्युत निगम सहित कई पावर कंपनियों ने इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

तीस करोड़ के करीब सेस हो चुका था जमा
हिमाचल में कुछ कंपनियों ने वाटर सेस जमा करवाना शुरू कर दिया था. राज्य में 172 के करीब हाइड्रो पावर कंपनियां चल रही हैं. इन कंपनियों में से लगभग 35 कंपनियों ने 27 से 30 करोड़ रुपए के करीब सेस जमा करवा दिया था. वहीं, कमीशन ने बाकी कंपनियों को सेस जमा करवाने के लिए चरणबद्ध तरीके से नोटिस भी जारी किए थे.

हिमाचल का तर्क, नदियों का पानी हमारा, लगा सकते हैं सेस

हिमाचल सरकार का तर्क था कि राज्य में बहने वाली नदियों के पानी पर उसका हक है. राज्य सरकार इन नदियों के पानी पर स्थापित जलविद्युत परियोजनाओं पर सेस लगाने का हक रखती है. जब जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड वाटर सेस लगाकर राजस्व कमा रहे हैं तो हिमाचल को भी उसका हक मिलना चाहिए. वहीं, इस सेस के खिलाफ अलग-अलग कंपनियां हाईकोर्ट पहुंची थी. हाईकोर्ट में एनटीपीसी यानी नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन, बीबीएमबी, एनएचपीसी सहित एसजेवीएनएल ने तर्क दिया था कि केंद्र और राज्य के साथ समझौते के अनुसार वे राज्य को 12 से 15 फीसदी निशुल्क बिजली देती हैं. ऐसे में सेस वसूलना संविधान के प्रावधान के अनुसार सही नहीं होगा. उल्लेखनीय है कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर कहा था कि वे वाटर सेस वसूलने की मंशा छोड़ दें. केंद्र की चिट्ठी ने भी इसे संविधान के खिलाफ बताया था और पंजाब से लेकर हरियाणा की सरकारों ने भी इसपर सवाल उठाए थे. यहां बता दें कि हिमाचल सरकार ने 2023 में बजट सेशन में वाटर सेस बिल पारित किया था.

4 हफ्ते में लौटानी होगी राशि

39 याचिकाकर्ता कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकारते हुए हाइकोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों को खारिज कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने प्रदेश सरकार को वाटर सेस के रूप में उगाही गई राशि 4 हफ्ते में वापिस करने के आदेश भी दिए हैं. कोर्ट ने कानून को निरस्त करते हुए इसके तहत बनाए गए नियमों को भी रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत प्रदेश सरकार इस तरह के कानून बनाने की शक्तियां नहीं रखती.

कंपनियों की दलील थी कि प्रदेश सरकार संविधान से मिली शक्तियों के तहत उस पानी पर टैक्स नहीं लगा सकती जिसका इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिए किया जाना हो. प्रदेश सरकार केवल उत्पादित बिजली पर ही टैक्स या सेस लगाने की शक्तियां रखती है। केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 13 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं. इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम के तहत कंपनियों से सेस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है.

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Last Updated : Mar 5, 2024, 5:27 PM IST

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