शिमला: वेलेंटाइन डे पर हर तरफ प्यार, इश्क, मोहब्बत की बात होती है और जब-जब प्यार की बात छिड़ती है तो लैला-मजनू, हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट या शीरीं-फरहाद का जिक्र होना लाजमी है. लेकिन फेमस कहानियों के बीच कुछ ऐसी लोकगाथाएं भी हैं जो प्यार की ऐसी दास्तान बयां करती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के दिल में जिंदा रहती है. ऐसी ही एक कहानी है हिमाचल प्रदेश की कुंजू और चंचलो की प्रेम कहानी, ये कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी ना सिर्फ सुनाई जाती है बल्कि गाई और गुनगुनाई जाती है. ये कहानी अलग-अलग तरह से सुनाई जाती है लेकिन प्यार की अमिट दास्तान हर कहानी में झलकती है. कुछ इस कहानी को सच्चा मानते हैं तो कुछ सिर्फ प्यार का अफसाना, हकीकत जो भी हो लेकिन ये कहानी किताब के पन्नों और हिमाचली गीतों के जरिये दिलों में उतर जाती है.
कुंजू और चंचलो की कहानी
डॉ. गौतम व्यथित की किताब 'चौपाल' में हिमाचल की प्रेम और बलिदान वाली कहानियों का जिक्र है. इन्हीं में से एक कहानी कुंजू और चंचलो की भी है. इस कहानी के मुताबिक हिमाचल प्रदेश की चंबा रियासत (आज का चंबा जिला) में एक गांव में कुंजू और चंचलो नाम के प्रेमी थे. चंचलो अपने नाम की तरह ही बहुत खूबसूरत थी. चंचलो के पिता मजदूरी से परिवार का गुजारा करते थे और चंचलो भेड़ बकरियां चराती थी. उधर कुंजू उसी गांव के अमीर परिवार का बेटा था. देखने में गभरू जवान और बचपन से ही चंचलो के साथ खेलते-कूदते बड़ा हुआ था. बचपन में ना ऊंच-नीच की फिक्र, ना अमीर-गरीब का फासला, लेकिन बचपन के खेल-खिलौने और मिलना-जुलना जवानी में भी जारी रहा. बचपन की दोस्ती जवानी आते-आते प्यार में बदल गई. उनकी मेल मुलाकातों और रिश्तों को लेकर इलाके के लोग बातें बनाने लगे. उन्हें साथ देखकर बातें होने लगी जो राई का पहाड़ बनने लगी थी. लेकिन दोनों इस बात से अनजान थे.
इस बीच कुछ लोगों ने कुंजू के पिता के कान भर दिए. शिकायत हुई कि चंचलों ने अमीर घर का बेटा जानकर कुंजू को फंसाया है. चंचलो के परिवार से लेकर उसकी जात को कटघरे में रख दिया गया. कुंजू के पिता भी इज्जत, सम्मान, मान-मर्यादा और ऊंच-नीच की दुहाई सुनकर बौखला गए. करीबियों ने गुस्से की बजाय समझदारी से काम लेने की नसीहत दी तो दोनों को अलग करने की एक तरकीब पिता को सूझ गई. बेटे कुंजू को सेना में भर्ती होने के लिए कहा और बेटा पिता की बात मान गया. चंचलो को जल्द मिलने का वादा करके वो रंगरूटी (ट्रेनिंग) के लिए चला गया. चंचलो भी अब कुंजू के इंतजार में दिन काटने लगी, वो जुदाई का गम सह रही थी लेकिन आस-पड़ोस के लोग इससे खुश थे. कहते हैं कि जमाना हमेशा ही प्यार करने वालों का दुश्मन रहा है. उधर कुंजू के पिता भी इस प्यार को दफन करने की तरकीबें ही सोच रहे थे.
इसी बीच एक दिन कुंजू के पिता ने चंचलो के पिता को बुलाकर कहा कि जो हुआ उसे भूल जा और अपनी बेटी की शादी कर दे वरना तेरी बेटी के कारण बुढ़ापे में तेरी इज्जत जाएगी. चंचलो के पिता ने कहा कि मैं दो जून की रोटी मुश्किल से जुगाड़ पाता हूं ऐसे में बेटी को ब्याहने की हिम्मत ही नहीं है. तब कुंजू के पिता ने शादी का पूरा खर्च उठाने की हामी भर दी. उधर कुंजू की यादों में खोई चंचलो की शादी तय हो गई और उसकी राह देखते-देखते वो किसी और की दुल्हन बनकर विदा हो गई.
कुछ वक्त बाद कुंजू रंगरूटी पास करके लौटा तो उसके मन में चंचलो से मिलने की खुशी ने उसके पैरों में पंख लगा दिए थे. उधर चंचलो शादी के बाद भी कुंजू की राह तकती थी, इस इंतजार में कि काश एक बार प्रेमी का दीदार हो जाए. इन सब बातों से अनजान कुंजू ने लौटते वक्त चंबा के बाजार से अपनी प्रेमिका के लिए कुछ तोहफे खरीद लिए. वो पहाड़, नदी, झरनों और हर उस इलाके की टोह लेता बढ़ रहा था जहां वो चंचलो से मिलता था. लेकिन चंचलो तो नदिया के पार अपने ससुराल में थी. वो उदास होने लगा और दिल घबराने लगा लेकिन मन में चंचलों से मिलने की एक उम्मीद जिंदा थी. कुछ देर बाद वो भी टूट गई. कुंजू को गांव का ही एक दोस्त रास्ते में मिला और दोनों एक दूसरे से खुशी-खुशी मिले. कुंजू की जुबान से चंचलों की खोज-खबर के अनगिनत सवाल एक ही सांस में निकल गए लेकिन कुछ देर की चुप्पी के बाद दोस्त की जुबां से जो सच निकला उसने कुंजू के दिल की धड़कनें थोड़ी देर के लिए मानो थम सी गई थी.
दोस्त ने बताया कि चंचलो की शादी एक अधेड़ शख्स से हुई है और वो आखिर तक तेरा इंतजार करती रही. विदाई पर भी तेरा नाम लेकर चीखती रही लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी. समाज और तेरे पिता के डर के आगे उसकी एक ना चली. कुंजू को मानो सांप सूंघ गया था, पलभर में उसकी उम्मीदों का आसमान बिखर गया था. चंचलो की याद में उसकी आंखें झर-झर बहने लगी और समाज के साथ-साथ पिता के व्यवहार से उसका गुस्सा एक चीख में निकल गया. अब उसकी चंचलो से मिलने की हिम्मत भी ना हुई और उसने अपने दोस्त से तोहफे चंचलो तक पहुंचाने की गुजारिश की. कुंजू के तोहफे पाकर चंचलो कई दिन तक रोती बिलखती रही और आखिरकार कुंजू की याद में उसने तड़प-तड़पकर जान दे दी.
एक और कहानी है प्रचलित
इन दोनों की एक और कहानी भी प्रचलित है. पत्रकार विनोद भावुक बताते हैं कि एक अन्य प्रचलित कहानी के मुताबिक चंबा के राजा का एक सिपाही था, जिसका नाम कुंजू था. जो चंचलो नाम की लड़की से प्यार करता था. चंचलो एक नृत्यांगना थी और उसकी खूबसूरती के कारण उसे राजा भी पसंद करता था. इसके अलावा वजीर की भी चंचलो पर नजर थी. कुंजू और चंचलो के प्यार से राजा अनजान था लेकिन वजीर की बदौलत ये प्रेम कहानी राजा के कानों तक भी पहुंच गई. वजीर ने राजा को कुंजू को युद्ध में भेजकर मरवाने की नसीहत दी, जिससे की चंचलो राजा की हो जाए.
राजा ने कुंजू को युद्ध में भेजने का आदेश दिया और कुंजू भी एक देशभक्त सिपाही होने के नाते तैयार हो गया. कुंजू ने युद्ध पर जाने से पहले चंचलो से मुलाकात की और उसे निशानी के तौर पर चांदी के बटन दिए. कहते हैं कभी चंबा चांदी के लिए भी फेमस था. राजा और वजीर का षडयंत्र कामयाब रहा और कुंजू युद्ध में मारा गया. इस बारे में जब चंचलो को पता चला तो वो मानो पागल हो गई. फिर उसे राजा और वजीर के षडयंत्र का भी पता चल गया, जिसके बाद चंचलो ने दोनों को श्राप देकर खुदकुशी कर ली. कहते हैं कि इसके बाद राजा ने भी पश्चाताप में खुदकुशी कर ली और वजीर की हत्या हो गई. हालांकि इसे लेकर अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं.