रांची:झारखंड विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बीजेपी रघुवर दास को फिर से एक्टिव पॉलिटिक्स में लाना चाहती है. माना जा रहा है कि रघुवर दास को पार्टी झारखंड की कमान दे सकती है. दूसरी तरफ हेमंत सोरेन एक बार फिर सीएम बन गए हैं. ऐसे में अगर रघुवर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनते हैं तो दोनों के बीच शब्द वाण फिर चल सकते हैं. बीजेपी नेता हेमंत सोरेन पर कई बार पर्सनल अटैक करते हैं, हालांकि हेमंत सोरेन ने कभी इन बातों को तवज्जो नहीं दिया.
एक कहावत है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. क्योंकि 'राजनीति' जरुरत की बुनियाद पर खड़ी होती है. झारखंड में अगर किसी ने इस फॉर्मूले को बेहतरीन तरीके से समझा और एक्जिक्यूट किया है, तो वो हैं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन. कभी अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ पर्सनल नहीं हुए. अपने कुछ फैसलों से प्रशासनिक खेमे में भी विश्वास कायम किया. ऐसी लकीर खींची कि बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और चंपाई सोरेन सरीखे नेता भी उनके सामने टिक नहीं पाए.
रघुवर दास को हेमंत सोरेन ने किया था माफ
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार सीटिंग सीएम रघुवर दास को सीएम फेस के रुप में प्रोजेक्ट किया था. यह जानते हुए कि कुछ स्टेटमेंट और व्यवहार की वजह से रघुवर दास के प्रति लोगों में नाराजगी थी. फिर रघुवर दास के नेतृत्व में पार्टी ने 65 पार का नारा दिया था. रघुवर दास इस कदर कॉन्फिडेंट थे कि उन्होंने चुनावी सभा के दौरान जामताड़ा में हेमंत सोरेन के खिलाफ जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल कर दिया था. तब हेमंत सोरेन ने रघुवर दास के खिलाफ मिहिजाम थाना में एसटी-एससी की धाराओं के तहत मामला दर्ज करवाया था. लेकिन 2019 का चुनाव जीतने और दूसरी बार सीएम बनते ही हेमंत सोरेन ने एक मिसाल पेश कर दी.
मार्च 2020 में हेमंत सोरेन ने जामताड़ा के एसपी के नाम पत्र लिखकर कहा कि रघुवर दास के खिलाफ मिहिजाम थाना में 25-12-2019 को धारा-504/506/404 भा.द.वि. और 3(r)(s) एसटी-एससी अत्याचार अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) के तहत दर्ज कांड संख्या 110/19 मामले में आगे कोई कार्रवाई करने की जरुरत नहीं है. उन्होंने कहा था कि मेरे दिल में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ कोई द्वेष या बदले की भावना नही है. अब चुनाव खत्म हो गया है और मैं नहीं चाहता कि इस मामले को आगे बढ़ाया जाए.
बाबूलाल मरांडी के खिलाफ नहीं हुए पर्सनल
महागठबंधन के पक्ष में 2019 का परिणाम आने पर हेमंत सोरेन खुद बाबूलाल मरांडी से मिलने उनके आवास पहुंचे थे. तब बाबलाल मरांडी जेवीएम सुप्रीमो थे. बाबूलाल मरांडी ने उनको शुभकामनाएं भी थी. लेकिन फरवरी में बाबूलाल मरांडी भाजपा में शामिल हो गये. उन्होंने भाजपा में जेवीएम का विलय करा दिया था. उनके खिलाफ राजकुमार यादव, भूषण तिर्की, दीपिका पांडेय सिंह, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने स्पीकर के ट्रिब्यूनल में दलबदल का मामला दर्ज करावाया था. उसपर अगस्त 2022 में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. इसके बावजूद बाबूलाल मरांडी की ओर से हेमंत सोरेन और उनके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी जारी रही. लेकिन हेमंत सोरेन ने कभी पर्सनल नहीं हुए. उनके खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी से बचते रहे. कहा जाता है कि हेमंत सोरेन चाहते तो बाबूलाल मरांडी की विधानसभा सदस्यता चली गई होती. क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ जब किसी के खिलाफ दल बदल मामले में रिजर्व फैसले को नहीं सुनाया गया.