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चंबल में अनोखा मुकाबला, हथियार नहीं सुर-ताल से दिया जाता है जवाब, लोकगीतों की सुनाई देती हैं गूंज - GWALIOR TRADE FAIR

ग्वालियर में व्यापार मेले के 121वें साल की शुरुआत यादगार बन 35,000 से ज्यादा ग्रामीणों ने कन्हैया लोक गीत मुकाबले में हिस्सा लिया. लोकगीतों की बहार से भरा माहौल देखने लायक था. पढ़िए पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट.

GWALIOR TRADE FAIR
ग्वालियर में व्यापार मेले का आयोजन (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 26, 2024, 3:52 PM IST

Updated : Dec 26, 2024, 6:48 PM IST

ग्वालियर:हर साल लगने वाले ग्वालियर के व्यापार मेले का इंतजार तो पूरे ग्वालियर चम्बल अंचल को रहता है. लेकिन जब इस बार 25 दिसंबर को मेले की शुरुआत हुई तो पूरी रोनक 400 गांव के बीच हुए लोक गीत मुकाबले ने चुरा ली. 35,000 से ज्यादा ग्रामीण एक जगह इकट्ठा थे, और आधा सैकड़ा से अधिक गायन टोलियां. एक टोली गायन पूरा करती तो दूसरी मुकाबले में उन्हें अपने लोकगीत से छकाने में जुट जाती. ये संगीत संध्या सुनने वालों के चेहरे पर भी हंसी और खुशी लाने में कामयाब रही.

तारागंज की टोली के लोकगीत ने बढ़ाया जोश का लेवल
लोकगीतों के इस मुकाबले में जोश का चरम उस वक्त दिखायी दिया, जब तारागंज से आई गायन टोली ने भगवान राम पर अपना लोकगीत ''कंचन जड़ित रत्न शुभ दान गऊ दान, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, रघुवंशिन के करम खुल जाते' सुनाया. ये मुकाबला एक दूसरे को हराने का नहीं बल्कि चेहरों पर मुस्कान लाने का दिखायी दिया. मेले में आए इन ग्रामीणों के साथ साथ इसे देखने आए हर चेहरे पर मुस्कान दिखायी दी.

व्यापार मेले में लोकगीतों का मुकाबला (ETV Bharat)

400 गांव के 35 हजार लोग थे इकट्ठा
असल में ये कार्यक्रम लोकगीत कन्हैया गायन के नाम से आयोजित होता है, जो मूलरूप से पाल बघेल समाज द्वारा आयोजित किया जाता है. कार्यक्रम के आयोजक राजू सागर कहते हैं कि, ''इस कार्यक्रम का आयोजन उनके सागर परिवार के द्वारा किया जाता है. इसे किसी मुकाबले की तरह नहीं बल्कि त्योहार की तरह देखते हैं. हर साल इसका बेसब्री से सभी को इंतजार रहता है. इस साल भी ग्वालियर चम्बल अंचल के लगभग 400 गांव से 35, 000 लोग इसमें शामिल हुए और लगभग 50 से 60 टोलियों के बीच लोक गीत गायन हुआ.''

1903 से हर साल हो रहा आयोजन
पाल बघेल समाज के जिलाध्यक्ष चौधरी राकेश पाल ने बताया कि, ''हर साल इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक गीत जो देसी भाषा में हमारे अपने गीत होते हैं उनका गायन किया जाता है. यह इस साल 121वां कार्यक्रम था, इसकी शुरुआत पाल बघेल समाज के बुज़ुर्गों द्वारा साथ 1903 में किया गया था. तब से ही यह निरंतर जारी है. यह कार्यक्रम हर साल 25 दिसंबर के दिन ग्वालियर व्यापार मेले में आयोजित किया जाता है. इसके लिए किसी प्रकार का कोई आमंत्रण नहीं दिया जाता लोग स्वेच्छा से यहां पहुंचते हैं. जब एक टोली अपना गायन पूरा करती है तो दूसरा उसका जवाब देने के लिए गाती है.''

Last Updated : Dec 26, 2024, 6:48 PM IST

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