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PCC चीफ के रूप में डोटासरा पार्ट-2 को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज, कांग्रेस के गलियारों में बदलाव पर सुगबुगाहट - Lok Sabha Election 2024

लोकसभा चुनाव के बाद राजस्थान कांग्रेस के मुखिया के चेहरा को लेकर जयपुर में इन दिनों चर्चाओं का बाजार तेज हो चला है. सवाल है कि क्या डोटासरा को फिर ये कमान सौंपी जाएगी या अशोक गहलोत फिर एक बार चौंकाने वाले हैं.

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राजस्थान कांग्रेस का मुखिया (ETV Bharat File Photo)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 14, 2024, 6:53 PM IST

जयपुर. लोकसभा चुनाव के बाद क्या राजस्थान कांग्रेस के मुखिया का चेहरा बदला जाएगा, इस बात को लेकर जयपुर में इन दिनों चर्चाओं का बाजार तेज हो चला है. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के रूप में गोविंद सिंह डोटासरा तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. ऐसे में उन्हें पार्टी से एक्सटेंशन मिलने की चर्चा भी है. ऐसे में राजस्थान में नए सियासी संतुलन के लिहाज से बदलाव को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दिल्ली दरबार पर सबकी निगाहें टिकी होंगी.

दरअसल, गोविंद सिंह डोटासरा ने 2020 में सियासी संकट के बीच राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान संभाली थी. उनका तीन साल का कार्यकाल पिछले साल खत्म हो गया, लेकिन लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें एक्सटेंशन मिला था. ऐसे में अब एक बार फिर इस बात को लेकर सुगबुहाट तेज है कि गोविंद सिंह डोटासरा को फिर मौका मिलेगा या प्रदेश कांग्रेस का चेहरा बदल जाएगा. हालांकि, आलकमान के इस फैसले पर लोकसभा चुनाव के नतीजों का असर जरूर दिखाई देगा.

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अब तक इन प्रदेशाध्यक्षों को मिला दोबारा मौका :कांग्रेस के इतिहास में कई प्रदेशाध्यक्ष ऐसे रहे हैं, जिन्होंने एक से ज्यादा बार राजस्थान कांग्रेस की कमान संभाली है. इनमें कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा, गिरधारी लाल व्यास और गिरिजा व्यास के नाम सबसे लंबे समय तक कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड है. सचिन पायलट को भी दूसरी बार प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन वे अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ऐसे में चर्चा है कि प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो डोटासरा को दुबारा मौका मिल सकता है.

डोटासरा के हक में चुनावी नतीजे :विधानसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 71 सीट मिली हैं. अब लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर भी कांग्रेस का खेमा खासा उत्साहित नजर आ रहा है. हालांकि, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खेमा सरकार रिपीट होने को लेकर आशान्वित था, लेकिन कांग्रेस को 71 सीट पर संतोष करना पड़ा. हालांकि, 71 सीट आने के बाद कांग्रेस नेताओं ने प्रदेश में मजबूत विपक्ष के रूप में जनता के मुद्दों को लेकर सड़क से सदन तक संघर्ष करने की बात कही है.

प्रदेश में गुटबाजी पर लगा विराम :राजस्थान कांग्रेस में नेताओं और उनके समर्थकों के बीच गुटबाजी और खेमेबंदी का लंबा इतिहास रहा है. गोविंद सिंह डोटासरा से पहले सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे. उनका दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं होने का प्रमुख कारण भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आपसी खींचतान रही है, लेकिन गोविंद डोटासरा के अध्यक्ष रहते कुछ हद तक कांग्रेस में गुटबाजी पर लगाम लगी है और विधानसभा चुनाव में भी इसका असर देखने को मिला था.

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पायलट फैक्टर से निपटना होगा चुनौती :सचिन पायलट कांग्रेस के लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं. कांग्रेस ने उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते ही कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा और बहुमत हासिल किया. इसके बाद उन्हें उप मुख्यमंत्री के साथ कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के रूप में दूसरा मौका मिला. वे पांच साल तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे. वे फिलहाल, एआईसीसी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के पद को लेकर जो भी फैसला होगा उसमें सचिन पायलट की राय अहम होगी.

क्या फिर चौंकाएंगे अशोक गहलोत :तीन बार मुख्यमंत्री रहने से पहले अशोक गहलोत राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे हैं. अशोक गहलोत सितंबर 1985 से जून 1989 तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे. अब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को लेकर लिए जाने वाले फैसले में अशोक गहलोत की राय भी अहम मानी जा रही है. हाल ही में अमेठी में एक साक्षात्कार में जब उनसे कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का पद संभालने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने साफ तौर पर इनकार नहीं किया. इसके बाद से माना जा रहा है कि इस सियासी घटनाक्रम में वे भी कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकते हैं.

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