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गया के इस सरकारी स्कूल में 1351 स्टूडेंट, 28 शिक्षकों की तैनाती लेकिन क्लासरूम सिर्फ 5 - School In Gaya

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 29, 2024, 4:02 PM IST

Students Facing Inconvenience In Gaya: गया के करियादपुर स्थित मॉडर्न प्लस टू स्कूल 50 सालों से असुविधाओं का दंश झेल रहे है. यहां 1351 छात्रों और 28 शिक्षक पर सिर्फ पांच कमरे है. बच्चों को पढ़ने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में बैठने की फजीहत को लेकर छात्र खासकर छात्राएं विद्यालय नहीं आना चाहती.

Students Facing Inconvenience In Gaya
गया में 50 सालों से असुविधाओं का दंश झेल रहे छात्र (ETV Bharat)

गया: बिहार में शिक्षा विभाग हर महीने कई बड़े दावें करता है, लेकिन धरातल पर इसका कोई वास्ता नहीं दिख रहा है. उदाहरण के रूप में गया जिले को ही ले लीजिए. यहां के टनकुप्पा प्रखंड अंतर्गत करियादपुर प्लस टू उच्च विद्यालय की स्थिति पर इस बीच कई सवाल खड़े हो रहे है. सवाल यह उठ रहा कि आखिर पिछले 50 सालों से अधिक समय से शिक्षा विभाग इस विद्यालय की सुध क्यों नहीं ली, जबकि यह विद्यालय एक ऐसे सेंटर वाले स्थान पर है, जो गया जिले के चार प्रखंडों बोधगया, मोहनपुर, टनकुप्पा और फतेहपुर को जोड़ता है. यहां इन चार प्रखंडों के छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए इस विद्यालय में आते हैं.

पांच कमरे में 1351 छात्रों की पढ़ाई:गया जिले के टनकुप्पा प्रखंड अंतर्गत प्लस टू उच्च विद्यालय करियादपुर को मॉडर्न स्कूल का तमगा प्राप्त है, लेकिन यहां जो व्यवस्थाएं हैं, उसे देखकर यह प्रतीत होता है कि मॉडल स्कूल का तमगा देकर सम्मानित नहीं, बल्कि मजाक उड़ाया गया है, क्योंकि इस विद्यालय में 1351 बच्चे नामांकित है, इन 1351 बच्चों के लिए सिर्फ पांच कमरे ही हैं. इन पांच कमरे में ही छात्रों की पढ़ाई होती है. एक कमरे में शिक्षक बैठते हैं. शिक्षकों की संख्या 28 है. अब 28 शिक्षक एक कमरे में कैसे बैठ पाते होंगे, यह भी सोचने वाली बात है.

विद्यालय में सभी विषयों के शिक्षक:सबसे बड़ी बात है, कि इस विद्यालय में सभी विषयों के शिक्षकों की पोस्टिंग है. यहां नृत्य संगीत, व्यायाम से लेकर हर विषयों के शिक्षक हैं. किंतु इस विद्यालय में न तो पर्याप्त कमरे हैं, जिससे कि हर विषय की पढ़ाई हो सके जैसे यहां व्यायाम शाला के लिए कमरा नहीं है. नृत्य संगीत की शिक्षा के लिए कमरा नहीं है. कंप्यूटर की पढ़ाई के लिए कोई कमरा नहीं है. इसके अलावा कई और विषय हैं जिनके शिक्षक तो हैं, लेकिन उनके लिए कमरा नहीं, जिसमें कि छात्रों को शिक्षा दे सके यहां कुल पांच कमरे ही है. इन पांच कमरों में ही 1351 छात्रों को पढ़ना है. अब समझा जा सकता है कि इन पांच कमरों में कैसे 1351 बच्चों की पढ़ाई होगी.

जगह नहीं मिलती, इसलिए कम आते छात्र: आज के दौर में शिक्षा के प्रति बच्चों में लगाव बढ़ा है, लेकिन इस स्कूल के लिए दुर्भाग्य की बात है, कि इतने पुराने हुए इस स्कूल में बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते हैं. कारण है, कि यहां उन्हें बैठने की व्यवस्था नहीं मिल पाती है. बैठने की फजीहत को लेकर छात्र खासकर छात्राएं विद्यालय नहीं आना चाहती. यह विद्यालय 1968 में बना है और काफी पुराना है, लेकिन इस पुराने स्कूल की सूरत 50 साल बाद भी नहीं बदली है. यहां छात्रों की उपस्थिति संख्या औसतन 200 से 250 के आसपास ही रहती है, यानी की 1351 नामांकन वाले प्लस टू उच्च विद्यालय करियादपुर में 200 से 250 बच्चों का आना, कहीं न कहीं मजाक का पात्र बनाता है. सरकार की कोशिश है, कि विद्यालय में 75% छात्रों की उपस्थिति रहे, लेकिन यहां 20% भी छात्र पढ़ने नहीं आते हैं.

कंप्यूटर का कमरा भी नहीं: मॉडल स्कूल का तमगा देकर मजाक उड़ाया गया: इस संबंध में प्लस टू उच्च विद्यालय करियादपुर के प्रभारी प्रधानाध्यापक विकास कुमार ने बताया कि इस विद्यालय की दुर्दशा दी गई है. 1968 में बने स्कूल की सूरत 50 से अधिक सालों के बाद भी नहीं बदली है. यहां व्यवस्थाओं का घोर अभाव है. यहां व्यायाम शाला नहीं है, नृत्य सीखने के लिए कमरा नहीं है. कंप्यूटर लैब, कंप्यूटर का कमरा भी नहीं है. यहां कुल पांच कमरे हैं, जबकि यहां छात्रों का नामांकन 1351 है. अब समझा जा सकता है, कि 1351 नामांकन वाले इस विद्यालय में सिर्फ पांच कमरे हैं. एक कमरा शिक्षकों के लिए है, जिसमें वे बैठते हैं. उनको भी बैठने की जगह नहीं मिलती है.

"यहां कुल 200 से 250 के बीच ही छात्र आते हैं. पांच कमरा होने के कारण इसमें सिर्फ 200 बच्चे ही बैठ सकते हैं. वे मांग करते हैं, कि इस विद्यालय की सूरत बदले और जिस तरह से मॉडल स्कूल का दर्जा दिया गया है, उस अनुरूप से बनाया जाए. कमरे की कमी से यहां छात्रों के लिए आए बेंच भी रख रखाव के अभाव में सड़ रहे हैं." - विकास कुमार, प्रभारी प्रधानाध्यापक, प्लस टू उच्च विद्यालय, करियादपुर

"मैं दसवीं की कक्षा में पढ़ती हूं. यहां पढ़ने के लिए कम कमरे है. इस कारण मुश्किलें होती है, लेकिन विद्यालय आ जाने पर किसी तरह से बैठा दिया जाता है. लौटने नहीं दिया जाता है. यहां की समस्या दूर होगी तो कम से कम बच्चे पढ़ने आते हैं, यदि सुविधा मिलेगी तो ज्यादा बच्चे आएंगे." -पुष्पा कुमारी, छात्रा

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