पलामू: 'पलामू एक्सप्रेस' एक ऐसी ट्रेन जो कई दशकों से झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाके के लिए लाइफलाइन बनी हुई है. प्रयागराज महाकुंभ को लेकर पूरे देश में ट्रेनों की भीड़ को लेकर चर्चा हो रही है. लेकिन झारखंड से बिहार जाने वाली पलामू एक्सप्रेस किसी जमाने मे हजारों की भीड़ लेकर सफर किया करती थी.
बिहार से झारखंड अलग होने के बाद इस ट्रेन में भीड़ तो कम हुई, लेकिन एक बड़ी आबादी के लिए यह लाइफ लाइन बनी रही है. पलामू एक्सप्रेस झारखंड के बरकाकाना से बिहार की राजधानी पटना जाती है. पलामू एक्सप्रेस झारखंड के रांची, लातेहार, पलामू, गढ़वा बिहार के गया औरंगाबाद जहानाबाद और पटना को आपस में जोड़ती है.
1981 में शुरू हुआ पलामू एक्सप्रेस का परिचालन
1981 में पलामू एक्सप्रेस का परिचालन शुरू हुआ था. शुरुआत में यह ट्रेन पटना से चलकर झारखंड के बरकाकाना और मध्य प्रदेश के सिंगरौली जाया करती थी. पलामू के गढ़वा रोड में यह ट्रेन दो हिस्सों में बंट जाती थी. एक हिस्सा सिंगरौली जाता था जबकि दूसरा हिस्सा बरकाकाना जाता था. सिंगरौली और बरकाकाना से खुलने के बाद गढ़वा रोड रेलवे स्टेशन पर दोनों आपस में जुड़ जाते थे और पटना तक परिचालन होता था. 2021-22 में सिंगरौली के लिए अलग ट्रेन हो गई जबकि पलामू एक्सप्रेस स्वतंत्र रूप से बरकाकाना तक के लिए हो गई.
मंत्री से लेकर अधिकारी करते थे पलामू एक्सप्रेस से सफर
बिहार के बंटवारे से पलामू एक्सप्रेस लाखों की आबादी के लिए लाइफ लाइन बनी हुई थी. बिहार की राजधानी पटना जाने के लिए एक बड़ी आबादी पलामू एक्सप्रेस का ही इस्तेमाल करती थी. पलामू एक्सप्रेस से अविभाजित बिहार में मंत्री, विधायक, डीसी, एसपी पटना जाया करते थे. पलामू एक्सप्रेस से जुड़ी नेताओं की कई रोचक कहानियां भी हैं. पलामू एक्सप्रेस को लेकर पूर्व सांसद जोरावर राम ने एक लंबी लड़ाई भी लड़ी थी. जोरावर राम लगातार पलामू एक्सप्रेस को लेकर आवाज उठाते थे.