नई दिल्ली:प्राचीन समय में भारत में लोक गीत के माध्यम से नाटकों का मंचन होता था. तकनीक के बदलते स्वरूप ने नाटक मंचन के तरीके को बदल दिया, लेकिन आज भी कुछ नाट्य कलाकार हैं, जो लोक गीतों के माध्यम से नाटक मंचन करते हैं. ऐसे ही एक नाटक के निर्देशक हैं डॉ. सतीश जोरजी कश्यप. उन्होंने बताया कि वह एक स्वांग कलाकार हैं. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) द्वारा आयोजित भारत रंग महोत्सव में डॉ. सतीश ने अपनी 14 सदस्यों की टीम के साथ स्वांग कृष्णा की प्रस्तुति दी.
उन्होंने कहा कि पहले के नाट्य कलाकार गांव में एक पंडाल में स्वांग नाटक की प्रस्तुतियां करते थे और सभी को कलाकार कहा जाता था. इसमें नाटक मंचन के साथ साथ नाचना गाना भी हुआ करता था, लेकिन बदलते दौर ने इसके रूप में कुछ बदलाव लाए. वर्तमान में नाटक के क्षेत्र कई डिविजन है. इसमें नाट्य कलाकार, एक्टर, निर्देशक, लाइटिंग, ड्रेस आदि कई विभाग हो गए हैं. डॉ. सतीश ने बताया कि वह बचपन से ही स्वांग नाटक की प्रस्तुतियां कर रहे हैं. तब के समय से आज के दौर में कई बड़े बदलाव हुए हैं. अब स्वांग की प्रस्तुति में माइक, लाइट के साथ एक विशेष मंच पर प्रस्तुत किया जाता है. इसके अलावा कंटेंट में भी बदलाव आया है. समय की आवश्यकता के साथ और भी कई बड़े बदलाव आए हैं.
उन्होंने आगे बताया कि स्वांग कृष्णा एक प्रेरणादायक नाटक है, जो पारंपरिक स्वांग शैली में महाभारत की प्राचीन कथा का वर्णन करता है. एक घंटे 40 मिनट के इस नाटक की कहानी कौरवों और पांडवों के बीच चलने वाले सतत संघर्ष के चारों ओर घूमती है, जो कुरुक्षेत्र के महायुद्ध तक पहुंचता है. युद्ध के बीच, अर्जुन, एक नैतिक दुविधा का सामना करता है, जिससे उनके सार्थी बने भगवान कृष्ण, उन्हें गूढ़ ज्ञान को सिखाने के लिए प्रेरित होते हैं.