उत्तरकाशी:रवाईघाटी में डेढ़ दशक पहले शुरू हुई गुलदाउदी के फूलों की खेती अब गायब होने के कगार पर है. टमाटर, फ्रेंचबीन, मटर की नकदी फसलों की भांति फूलों की खेती को अतिरिक्त आय के विकल्प के तौर पर 2009 में करीब एक दर्जन गांव के तीन सौ काश्तकारों ने गुलदाउदी के फूलों की खेती शुरू की थी. काश्तकारों ने इसे व्यवसायिक रूप दिया, लेकिन स्थानीय बाजार और अच्छे दाम न मिलने से काश्तकारों ने फूलों की खेती करनी बंद कर दिया है.
रवाईघाटी में होती है गुलदाउदी की खेती:पहाड़ों में गुलदाउदी की खेती अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में तैयार हो जाती है. अक्टूबर अंतिम सप्ताह में काश्तकार तुड़ान शुरू कर देते हैं, जो दिसम्बर प्रथम सप्ताह तक चलती है. एक सामाजिक संस्था के सहयोग से 2009 में नैणी, पिसाउं, किममी, मटियाली, धारी, देवलसारी, मुराड़ी तुनालका, सौली, क्षेत्र के 297 काश्तकारों ने गुलदाउदी के फूलों की खेती शुरू की थी.
काश्तकारों का हो रहा मोह भंग:आज सिर्फ नैणी गांव के कुछ काश्तकार ही गुलदाउदी की खेती कर रहे हैं. अन्य गांव में अब फूलों की खेती नहीं हो रही है. काश्तकारों का कहना है कि अन्य नकदी फसलों की अपेक्षा फूलों की खेती करने में मेहनत कम लगती है और जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं फूलों की खेती पर बीमारी भी कम लगती है. जिससे खाद और दवा की भी जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन स्थानीय बाजार की उपलब्धता न होने से काश्तकारों ने फूलों की खेती करनी बंद कर दी है.
धीरे-धीरे कम हो रही फूलों की खेती:2009 में नैणी गांव के सबसे ज्यादा काश्तकारों ने फूलों की खेती शुरू की थी. तब अकेले नैणी गांव के काश्तकार करीब सौ कुंतल फूलों का उत्पादन करते थे. आज नैणी गांव में भी गुलदाउदी की खेती करने वाले सिर्फ तीन काश्तकार रह गए हैं. वर्तमान में नैणी गांव के जगमोहन सिंह चन्द, रविन्द्र सिंह, सुनील चन्द गुलदाउदी फूलों की खेती कर रहे हैं.
बाजार ना मिलने से काश्तकार परेशान:इस वर्ष तीन काश्तकारों ने दो कुंतल फूलों का उत्पादन किया है. परिस्थितियों को देखते हुए काश्तकार भी अगले वर्ष से फूलों की खेती ना करने की बात कर रहे हैं. काश्तकारों का कहना है कि उत्तराखंड में आज तक फूलों की मंडी नहीं खुल पाई है. बाजार की उपलब्धता न होने से फूलों की खेती को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है, जिससे फूलों की खेती से काश्तकारों का रुझान घटा है.
बेचने में आती हैं परेशानियां:यदि अच्छा बाजार मिल जाए तो काश्तकार अन्य नकदी फसलों की भांति फूलों की व्यवसायिक खेती करेगा जो किसानों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बनेगा. वहीं रविन्द्र सिंह चन्द काश्तकार नैणी गांव ने बताया कि फूलों की खेती के प्रति लोगों का रुझान घटा है, जिसका उत्पादन पर असर पड़ा है. हमारे गांव में कभी सौ कुंतल फूलों का उत्पादन होता था, इस वर्ष दो कुंतल उत्पादन हुआ है. देहरादून सब्जी मंडी में कई बार कई दिनों तक फूल नहीं बिक पाते हैं. दिल्ली स्थित फूलों की मंडी तक फूलों को पहुंचाना मुश्किल है.
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