लोहरदगा: मौसम आधारित खेती की वजह से किसानों को ज्यादातर नुकसान का ही सामना करना पड़ता है. विशेष तौर पर कृषि प्रधान क्षेत्र में जब बारिश नहीं होती है तो फसल को पानी नहीं मिल पाता है. ऐसी स्थिति में किसान आर्थिक और मानसिक परेशानी झेलते हैं. यही कारण है कि किसानों को अलग-अलग फसल लगाने की सलाह भी दी जाती है. लोहरदगा में सरसों की खेती किसानों के जीवन में खुशियों की बहार ला रही है. विशेष तौर पर पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती को काफी बल मिला है. कम पानी में भी इसकी बेहतर पैदावार होती है.
कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा
सरसों की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कम मेहनत, कम पानी और ज्यादा मुनाफा है. लोहरदगा जिला में हर साल औसतन 1000-1200 मिलीमीटर बारिश होती है. जिले में 55070 हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से 7752 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है.
सब कुछ बारिश पर निर्भर
बारिश बेहतर हुई तो खेती भी बेहतर और नहीं हुई तो खेती बर्बाद. मौसम के आधार पर ही खेती निर्भर करती है. ऐसे में कई बार किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. कम बारिश में खेती को हो रहे नुकसान की वजह से किसान खेती से दूर भाग रहे हैं. रबी के मौसम में तो खेती की हालत और भी खराब हो जाती है. ऐसे में किसानों के समक्ष कम सिंचाई में खेती को लेकर तिलहन एक बेहतर फसल के रुप में निकल कर सामने आई है.
सरकार ने भी सरसों की खेती को बढ़ावा दिया