हल्द्वानी: गौलापार क्षेत्र टमाटर की खेती के लिए जाना जाता है. यहां के टमाटर की पहचान दूर-दूर तक है. लेकिन अब यहां के किसानों ने टमाटर की खेती से मुंह मोड़ लिया है. आलम यह है कि गौलापार में टमाटर की खेती अब केवल 20 % से 30% ही रह गई है. बताया जा रहा है कि टमाटर के सही दाम ना मिलने व लागत अधिक होने से यहां के किसानों ने पिछले दो-तीन सालों से टमाटर की खेती कम कर दी है.किसानों की मानें तो टमाटर की खेती में अब पहले जैसा मुनाफा नहीं रह गया है. इसके अलावा बाजारों में अन्य राज्यों के हाइब्रिड और पेस्टिसाइड से तैयार टमाटर ने जगह बना ली है. यही वजह है गौलापार की टमाटर की पैदावार में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है.
टमाटर की खेती से मुंह मोड़ रहे किसान, हर साल उठाना पड़ रहा नुकसान - Haldwani Tomato Production
Haldwani Goulapar Tomato गौलापार के किसानों का टमाटर की खेती से मोह भंग होता जा रहा है. किसानों का कहना है कि खेती से उनकी लागत तक नहीं आ रही है. जिससे उन्हें हर साल नुकसान उठाना पड़ता है.
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By ETV Bharat Uttarakhand Team
Published : Jan 24, 2024, 8:50 AM IST
हल्द्वानी मंडी के फल सब्जी एसोसिएशन अध्यक्ष कैलाश जोशी ने बताया कि जिले में टमाटर का उत्पादन गौलापार, कोटाबाग, चोरगलिया, चकलुआ, कालाढूंगी में कभी बड़े पैमाने पर टमाटर का उत्पादन हुआ करता था. दिसंबर में टमाटर की फसल तैयार होने लगती है. जनवरी और फरवरी में पहाड़ी क्षेत्र में इस टमाटर का पीक सीजन होता है.लेकिन पिछले कुछ समय से गौलापार व इसके आसपास के क्षेत्रों में टमाटर की खेती से किसानों ने किनारा कर लिया है. जिसके चलते टमाटर का उत्पादन अब 20% से 30% रह गया है. मंडी के आढ़तियों के मुताबिक पहाड़ के जैसा ही टमाटर अब रांची, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी उत्पादित होने लगा है.
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वहां टमाटर हाइब्रिड और पेस्टिसाइड से तैयार होने लगा है. लेकिन हल्द्वानी की टमाटर ऑर्गेनिक है. इसका स्वाद भी अलग होता है. गौलापार में ऑर्गेनिक टमाटर उगाए जाते हैं. किसानों की मानें तो पिछले कुछ समय से गौलापार व इसके आसपास के क्षेत्रों के टमाटर की फसल रोग लगने के कारण बर्बाद भी हो रही है. जिसके चलते किसानों ने टमाटर की खेती कम कर दी है.किसान अब टमाटर की खेती छोड़कर सोयाबीन के साथ-साथ अन्य पारंपरिक खेती की ओर अपना रुख कर रहे हैं. इसके अलावा टमाटर की खेती के लिए सरकार द्वारा किसानों को किसी तरह का कोई प्रोत्साहित नहीं किया जाता हैं. जिससे भी ये कारोबार दम तोड़ रहा है.
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