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रेशम उत्पादन से किसान कर रहे छप्पर फाड़ कमाई, कुमाऊं में 90 हजार किलोग्राम हुआ रेशम उत्पादन - Silk Production In Haldwani

Sericulture in Kumaon पहाड़ के किसानों के लिए रेशम की खेती फायदे का सौदा साबित हो रही है. जिसका नतीजा है कि पहाड़ के किसान अपनी पारंपरिक फसलों के साथ-साथ अब रेशम कीट पालन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर..

Sericulture in Kumaon
पहाड़ के किसान कर रहे रेशम उत्पादन (photo- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 25, 2024, 11:08 AM IST

रेशम उत्पादन से किसान कर रहे छप्पर फाड़ कमाई (VIDEO- ETV Bharat)

हल्द्वानी: कुमाऊं मंडल के किसानों का रुझान रेशम उत्पादन की ओर बढ़ रहा है. जिसका परिणाम है कि कुमाऊं मंडल में रेशम उत्पादन भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है. रेशम कीट पालन से 2800 से अधिक किसान जुड़े हुए हैं, जिन्होंने शहतूती रेशम कीट पालन के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2023-24 में 89,652.40 किलोग्राम रेशम के कोया का उत्पादन किया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 87,191.80 किलोग्राम शहतूती रेशम कोया उत्पादन हुआ था.

कुमाऊं मंडल के रेशम विभाग के उपनिदेशक हेमचंद्र ने बताया कि रेशम कीट पालन करने के लिए विभाग द्वारा किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि किसान अपनी पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम कीट पालन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकें. उन्होंने बताया कि किसान अपने खेत की अनुपयोगी मेड़ों पर 300 शहतूत के पौधे लगाकर 25,000 रुपये तक वार्षिक आमदनी कर रहे हैं. रेशम कीट की बिक्री के लिए उत्तराखंड कोऑपरेटिव रेशम फेडरेशन कोया बाजार में उपलब्ध कराता है. जिसमें बाहर के व्यापारी कोया खरीदने आते हैं.

हेमचंद्र ने बताया कि कुमाऊं की शहतूती रेशम पूरे देश में प्रसिद्ध है. कुमाऊं मंडल में मुख्य रूप से शहतूती रेशम का उत्पादन होता है. रेशम उत्पादन के लिए मार्च और अप्रैल के साथ-साथ सितंबर और अक्टूबर महीना सबसे अच्छा माना जाता है. उन्होंने कहा कि रेशम विभाग किसानों को रेशम कीट उपलब्ध कराता है. इसके बाद 15 दिन तक कीड़ों का पालन कर कोया तैयार किया जाता है. कोया उत्पादन में रेशम कीट को समय से चारा पत्ती देना, सफाई और दवाई का छिड़काव कर ख्याल रखा जाता है. साथ ही विभाग के तकनीकी कार्मिक भी किसानों को सलाह देते हैं. रेशम उत्पादन के लिए किसानों को किसी तरह का इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है. किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन भी कर सकते हैं.

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