वाराणसी :ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ज्ञानवापी स्थित मूल विश्वनाथ मंदिर की परिक्रमा के संबंध में पुलिस आयुक्त वाराणसी को दिए गए पत्र का उत्तर दो दिन बाद भी नहीं दिया गया है. इसे लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की ओर से दोबारा एक और पत्र बुधवार को पुलिस आयुक्त को प्रेषित किया जाएगा.
बता दें कि पहले एक पत्र सोमवार को दोपहर सवा तीन बजे तब दिया गया था जब पुलिस ने ज्ञानवापी की परिक्रमा को नई परंपरा बताकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य घाट स्थित श्रीविद्या मठ में ही रोक दिया था. तब पुलिस ने यह कहा था कि आप को वहां जाने की अनुमति नहीं है. पुलिस द्वारा बिना किसी आधार के ज्ञानवापी स्थित मूल विश्वनाथ मंदिर की परिक्रमा को प्रतिबंधित बताए जाने के बाद शंकराचार्य के शिष्य पं. गिरीश तिवारी द्वारा दिए गए पत्र में स्पष्ट किया गया था कि ज्ञानवापी की परिक्रमा कोई नई शुरुआत नहीं है, अपितु यह अनादिकाल से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है. उस पत्र में प्रमाण के तौर पर न्यायिक प्रक्रिया में दर्ज उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए थे. उनके द्वारा दिए गए पत्र में पुलिस आयुक्त को बताया गया था कि ज्ञानवापी की परिक्रमा की पुष्टि पूर्व में ही टाईटल-सूट संख्या 610 सन् 1991 में की गई है. इसकी पुन: पुष्टि उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा याचिका संख्या 3562 वर्ष 2021 में अनुच्छेद 227 के अंतर्गत भारतीय संविधान में विधित: पुष्ट किया गया है.
इसमें यह भी कहा गया है कि किसी भी परिस्थिति में विवादित परिसर का दोहरा चरित्र नहीं हो सकता. विवादित परिसर या तो मंदिर होगा या तो मस्जिद होगा जिसकी पुष्टि साक्ष्य के बाद ही हो सकती है और साक्ष्य लेना अभी तय है. इस आधार पर कि विवादित स्थल मस्जिद है, परिक्रमा को रोका नहीं जा सकता. विवादित स्थल का स्वरूप तय करने का कार्य न्यायालय का है न कि पुलिस-प्रशासन का और किसी भी स्थिति में परिक्रमा रोके जाने का अर्थ यह होगा कि विवादित स्थल का स्वरूप मस्जिद मानते हुए रोका जा रहा है.