गोड्डाः भाजपा को कभी संथाल की दो सबसे बड़े राजनीतिक घराने का आशीर्वाद प्राप्त था. लेकिन अब भाजपा के सामने काफी मुश्किलें हैं. क्योंकि इन राजनीतिक परिवार के सदस्य ही संथाल का सियासी खेल बिगाड़ न दे. इस कारण से दिग्गजों की नींद उड़ी हुई है.
संथाल सोरेन परिवार की कर्मभूमि
पहला नाम सोरेन परिवार का है, जिसकी साख वैसे तो पूरे राज्य में है लेकिन संथाल ही इनकी कर्म भूमि रही है. अगर गोड्डा में इनकी दखल की बात करें तो निवर्तमान सांसद और भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दुबे को 2009 में गुरुजी शिबू सोरेन के सबसे बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन की अचानक एंट्री के बाद ही मिली थी. क्योंकि तब गठबंधन के विरुद्ध दुर्गा सोरेन ने नामांकन करके 90 हजार वोट लाकर निशिकांत दुबे को पांच हजार मत से जीत दिलाने में मदद की थी.
उस निशिकांत दुबे घोर सोरेन परिवार विरोधी होने के बावजूद दुर्गा सोरेन को अपना मित्र बताते नहीं थकते थे. हालांकि इसके कुछ दिन बाद दुर्गा सोरेन के निधन हो गया और दूसरी ओर निशिकांत दुबे ने लगातार तीन चुनाव जीता. हालांकि तब भी गठबंधन के विरुद्ध दुर्गा चुनाव लड़े थे. आज निशिकांत दुबे के निशाने पर सबसे अधिक शिबू सोरेन का परिवार हैं. वे हेमंत सोरेन के जेल जाने तक का श्रेय भी खुद लेने से नहीं थकते.
इस बाबत राजनीतिक जानकार हेमचंद्र की मानें तो जो गलती दुर्गा सोरेन से वो अब सोरेन परिवार नहीं दोहराना चाहती है और इस बार 2024 के चुनाव हिसाब चुकता करना चाहती है. इसी कारण पहले इंडिया गठबंधन से प्रदीप यादव के नामांकन में सीएम चंपाई गोड्डा आए. फिर हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना कल्पना सोरेन लगातार गोड्डा आकर निशिकांत दुबे को चुनावी शिकस्त देने के लिए हर कोशिश कर रही हैं. हालांकि वो कितनी सफल होती हैं, ये तो 4 जून को आने वाला परिणाम तय करेगा.
बिनोदा बाबू का परिवार
दूसरी ओर देवघर के बिनोदा बाबू का परिवार, पूर्व मुख्यमंत्री बिनोदानंद झा का परिवार है. इनके पुत्र कृष्णनंद झा मंत्री रहे और अब इनके पोते अभिषेक आनंद झा ने भाजपा छोड़ गोड्डा लोकसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवारी ठोक दी है. 2009 में अभिषेक झा ने मधुपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और झामुमो के हाजी हुसैन से हार गए थे. उस समय ये बड़ी बात थी कि राज पालीवाल का टिकट काट कर अभिषेक आनंद झा को उम्मीदवार बनाया गया था. जिसमें वर्तमान गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे का बड़ा योगदान माना जाता है.
सांसद निशिकांत दुबे कई मंच से ये कहते रहे हैं कि उन्हें विनोदा बाबू के परिवार का आशीर्वाद है और तो और निशिकांत दुबे की उम्मीदवारी वाले हलफनाने में अभिषेक झा से एक करोड़ बीस लाख कर्ज लेने की बात भी कही है. ये मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया है क्योंकि अभिषेक आनंद झा ने कर्ज देने से इनकार करते हुए इसकी जांच की मांग की है. अभिषेक की निर्दलीय उम्मीदवारी और कर्ज प्रकरण को चुनाव आयोग में चुनौती से ये साफ है कि रिश्ते पुराने वाले नहीं रहे.
अब देखने वाली बात होगी कि कभी सोरेन परिवार और बिनोदा बाबू की कृपा पात्र रहे संथाल दोनों दोनों दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्रियों का परिवार इस बार थोड़े खफा हैं. इस बाबत पत्रकार हेमचंद्र कहते हैं कि वक्त वक्त की बात है जो कभी चेहते थे लेकिन आजकल बयार थोड़ी उलटी है. लेकिन इसका असर कितना होगा ये तो चार जून के बाद ही पता चलेगा.
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