शिमला:हिमाचल में 27 फरवरी को राज्यसभा सीट पर हुई क्रॉस वोटिंग से उपजे सियासी घटनाक्रम से प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा की छह सीटों में उपचुनाव होने जा रहे हैं. इसमें पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के प्रभाव वाले जिला हमीरपुर के तहत सुजानपुर विधानसभा सीट ऐसी है, जहां पर इस बार दो दल बदलू के बीच में चुनावी मुकाबला होने जा रहा है. रोचक बात ये है दोनों ही नेता राजनीति में प्रेम कुमार धूमल के शागिर्द रहे हैं. इन दोनों ने ही पूर्व मुख्यमंत्री की उंगली पड़कर राजनीति की एबीसीडी सीखी है.
चुनावी मैदान में प्रेम धूमल के दोनों चेले: पिछली बार बीजेपी से चुनाव लड़े रणजीत राणा ने इस बार दल बदल कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, राजेंद्र राणा 2022 में कांग्रेस टिकट पर विधायक बने और इस बार भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. ये दोनों ही पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के राजनीति में शिष्य माने बताए जाते हैं. ऐसे में वर्ष 2022 के चुनाव में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे रणजीत राणा ने चुनावी जंग फतेह करने को धूमल का आशीर्वाद लिया था, लेकिन हिमाचल में कांग्रेस चुनावी लहर की वजह से चुनाव हार गए थे.
2022 में राजेंद्र राणा सिर्फ 399 वोट से जीते: वहीं, कांग्रेस को छोड़कर अब कमल के चुनाव चिन्ह पर इलेक्शन लड़ रहे राजेंद्र राणा ने इस बार धूमल के घर जाकर जीत लिए उनका आशीर्वाद लिया है. अब देखना है कि क्या पाला बदलने के बाद रणजीत राणा 2022 में विधानसभा चुनाव में हुई हार का हिसाब किताब बराबर कर पाएंगे. बता दें 2022 के कांग्रेस की लहर के बाद भी राजेंद्र राणा सिर्फ 399 वोट से जीते थे.
जीत के लिए गुरु के आशीर्वाद की आस:पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के दोनों ही शिष्य राजेंद्र राणा और रणजीत राणा हमीरपुर जिले से संबंध रखते हैं. हमीरपुर की राजनीति में प्रेम कुमार धूमल के बहुत बड़ा प्रभाव रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री के गृह जिला में चुनावी रण में उतरे उम्मीदवार की चुनावी नाव धूमल के आशीर्वाद के बिना किनारे लगना संभव नहीं है. ऐसे में अब जीत के लिए दोनों ही नेताओं की आस गुरु के आशीर्वाद पर ही टिकी है. दोनों ही नेताओं ने इस बार अपनी अपनी पार्टी को छोड़कर पाला बदल लिया है.
राजेंद्र राणा और रणजीत राणा के बीच मुकाबला: पिछली बार 2022 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी सुजानपुर के उपचुनाव में राजेंद्र राणा और कैप्टन रणजीत सिंह चुनावी मैदान में एक दूसरे के ही खिलाफ खड़े हैं. फर्क इतना है कि पिछली बार राजेंद्र राणा हाथ के निशान पर चुनावी जंग में उतरे थे और रणजीत राणा ने फूल के निशान पर चुनाव लड़ा था. जिसमें जिला में धूमल प्रभाव होने पर भी रणजीत राणा को 399 मतों के अंतर से चुनाव में हार का मुहूं देखना पड़ा था. बता दें कि वर्ष 2012 में राजेंद्र राणा ने और कैप्टन रणजीत सिंह ने 2024 में ही भाजपा छोड़ी है.
2017 में चेले से मात खा गए थे गुरु:कांग्रेस से बागी होकर भाजपा का दामन थाम चुके राजेंद्र राणा ने भले ही राजनीति की राह पर धूमल की उंगली पड़कर अपना सफर तय किया हो, लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से मुख्यमंत्री का चेहरा रहे प्रेम कुमार धूमल को हराकर राजेंद्र राणा देश भर की राजनीति में सुर्खियों पर आ गए थे. अब फिर से घर वापसी से बाद राजेंद्र राणा भाजपा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं कैप्टन रणजीत राणा ने भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. लेकिन सुजानपुर की चुनावी समर में अपनी साख बचाने के लिए दोनों ही शिष्य की निगाहें धूमल के आशीर्वाद पर टिकी है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे अनुराग ठाकुर हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में है. ऐसे भाजपा का सिपाही होने के कारण धूमल की भी अपनी मजबूरियां हैं. लेकिन अब चुनावी दंगल में कौन किसको पटखनी देगा, ये 4 जून को चुनाव परिणाम ही बताएगा.
जिस पार्टी में भीतरघात कम उसके जीतने की संभावना अधिक:वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीति के जानकार धनंजय शर्मा का कहना है कि हमीरपुर की राजनीति में वर्तमान मुख्यमंत्री की अपेक्षा पूर्व मुख्यमंत्री का प्रभाव अधिक है. लेकिन राजनीति में हार और जीत के कई और भी डिसाइडिंग फैक्टर होते हैं. जिसमें भीतरघात भी चुनाव में हार और जीत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में जिस पार्टी में भीतरघात कम होगा, उसकी जीत की संभावना अधिक है. उनका कहना है कि सुजानपुर में जिस तरह के राजनीतिक समीकरण बने है, उससे दोनों ही दलों के बीच मुकाबला रोचक होने वाला है.
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