देहरादून: उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर मतदान की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद अब प्रदेश में निकाय चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. जून महीने के अंत में निकाय चुनाव कराए जाने की संभावना है. लगातार चुनावीं सरगर्मियों के बीच राज्य के विकास कार्य ठप पड़े हैं. दरअसल, मार्च महीने में आदर्श आचार संहिता लागू हुई थी. इसके बाद अब 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आएंगे, फिर सरकार का गठन होगा और उसके बाद आदर्श आचार संहिता समाप्त होगी. ऐसे में आचार संहिता हटने के बाद सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती, यही होगी कि इन चार महीने के दौरान जो विकास कार्य ठप पड़े हैं, उन विकास कार्यों पर विशेष फोकस किया जाए.
आचार संहिता के चलते विकास कार्य प्रभावित:उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सीमित संसाधनों में सिमटा हुआ है. यही नहीं प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से विकास की रफ्तार भी काफी धीमी रहती है. राज्य सरकारें तो तमाम कोशिशें करती रही हैं, ताकि प्रदेश में विकास की गंगा को बहाया जा सके, लेकिन प्रदेश में समय-समय पर लगने वाली आदर्श आचार संहिता के चलते विकास कार्य काफी अधिक प्रभावित होते रहे हैं. उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ था. उसके बाद से ही न सिर्फ हर 5 साल में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होते रहे हैं, बल्कि कई बार उप चुनाव की वजह से भी विकास कार्य प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा प्रदेश में पांच साल के भीतर दो बार निकाय चुनाव जैसा माहौल होता है.
उत्तराखंड में चुनाव का सिलसिला रहता है जारी:राज्य गठन के बाद पहली बार साल 2002 में विधानसभा का चुनाव हुआ था और साल 2004 में लोकसभा का चुनाव हुआ था. इसके बाद हर 5 साल बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव होते रहे. इतना ही नहीं कई बार नेताओं के सीट छोड़ने या फिर नेताओं के निधन होने के बाद विधानसभा और लोकसभा सीट पर उपचुनाव की स्थितियां भी बनीं. जिसके चलते आदर्श आचार संहिता लागू होती रही. इसी क्रम में हरिद्वार जिले को छोड़ बाकी प्रदेश में एक साथ निकाय चुनाव होते हैं. इसके कुछ सालों बाद अलग से हरिद्वार जिले में निकाय चुनाव कराए जाते हैं.
विकास कार्यों के लिए चुनाव अभिशाप:वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में जब बार-बार चुनाव होते हैं, तो ये वरदान की जगह अभिशाप बन जाते हैं, क्योंकि बार- बार आचार संहिता लग जाती है. लिहाजा, राज्य में किसी चीज की निरंतरता हो न हो लेकिन, उत्तराखंड में चुनावों की निरंतरता बनी रहती है. उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद जब पहली निर्वाचित सरकार बनी थी, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी को रामनगर से उपचुनाव लड़वाया गया था. इसके बाद साल 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज सीट खाली करवाई गई थी. ऐसा प्रदेश में कई बार होता रहा है.