नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतदान से पहले अलग-अलग वर्ग को लुभाने की कोशिश जारी है. इस कड़ी में बीते दिनों सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पहली बार मुखर होकर जाटों के आरक्षण को लेकर अपनी बात रखी थी. उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में दिल्ली का जाट समाज शामिल नहीं है. जबकि राजस्थान के जाट समाज का नाम केंद्र की ओबीसी लिस्ट में है. चुनाव से ठीक पहले जाट समाज को लेकर फिक्रमंद सिर्फ आम आदमी पार्टी ही नहीं भाजपा और कांग्रेस भी है. अन्य राजनीतिक दलों की तरह जातीय समीकरण को लेकर आम आदमी पार्टी ने पहली बार जाटों के लिए अपनी बात जिस तरह से रखी है, इसको कई मायने में देखा जा रहा है.
करीब 10 सीटों पर है जाट समाज का प्रभाव:राजनीतिक विश्लेषक नवीन गौतम ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा; ''दिल्ली के आम आदमी पार्टी इस बार पूर्ण बहुमत के साथ तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश में है. दिल्ली से सटे हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और समीपवर्ती इलाकों में जो ग्रामीण आबादी है इनमें जाटों के गांव की तादाद अच्छी खासी है. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से करीब 10 सीटों पर जाट अपना प्रभाव रखते हैं. यह सीटें महरौली, नजफगढ़, बिजवासन, पालम, मटियाला, विकासपुरी, नांगलोई जाट, नरेला, रिठाला और मुंडका विधानसभा सीट. इन जाट बहुल विधानसभा सीटों पर कभी भाजपा की अच्छी पकड़ थी.''
नवीन गौतम ने बताया कि दिल्ली की राजनीति में जाट एक समय ताकतवर राजनीति में केंद्र हुआ करते थे. वर्ष 1996 में साहिब सिंह वर्मा के रूप में दिल्ली को पहला जाट मुख्यमंत्री मिला. समय के साथ दिल्ली में शहरीकरण हुआ और जाटों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता चला गया. वर्ष 2008 में निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन के कारण कई सीटें इधर से उधर हुई. अब पश्चिमी और बाहरी दिल्ली में जाट समाज वाले गांव आते हैं. गांव के लोग एकजुट होकर वोट देते हैं, इसलिए सभी राजनीतिक दल इनको लेकर सतर्क रहते हैं.
''दिल्ली की विधानसभा सीटों का सियासी मिजाज एक जैसा नहीं है. हर सीट का अपना समीकरण है और इसीलिए कोई भी राजनीतिक दल चुनाव से पहले हर तबके का वोट बैंक हासिल करने के लिए कोशिश करती है. आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद पिछले तीन विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो उनमें पूर्वांचल, वैश्य, पंजाबी और जाट मतदाता का रुझान जिसकी तरफ हुआ है, उसकी जीत निश्चित हुई है. कुछ सीटों पर दलित वोटर की भी भूमिका अहम हो जाती है.''-नवीन गौतम, राजनीतिक विशेषज्ञ
केजरीवाल के खिलाफ जाट नेता प्रवेश वर्मा को भाजपा ने बनाया प्रत्याशी:इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को टक्कर देने वाले प्रवेश वर्मा को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है. वह जाट नेता हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी से गत वर्ष नवंबर में भाजपा में शामिल हुए कैलाश गहलोत भी जाट नेता हैं. केजरीवाल ने नांगलोई जाट से रघुविंदर शौकीन को प्रत्याशी बनाया है. इन्हें चुनाव से ठीक पहले मंत्रिमंडल में भी शामिल किया था. राघवेंदर शौकीन दिल्ली की नांगलोई जाट सीट से दो बार वर्ष 2015 और 2020 में चुनाव जीत चुके हैं. तीसरी बार भी उन्हें पार्टी ने टिकट दिया है.