नई दिल्ली: दिल्ली एम्स में अब फ्रेड रिच एटैक्सिया (एफआरडीए) नामक एक दुर्लभ और वंशानुगत बीमारी की दवा को भारत में उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास शुरू किए जाएंगे. डॉक्टरों के अनुसार यह बीमारी मुख्य रूप से तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों को प्रभावित करती है. इस बीमारी की दवा खोज ली गई है, लेकिन इसकी भारत में उपलब्धता नहीं है और खर्च भी अधिक है. दवा के उपयोग को बढ़ाने के लिए एम्स में अनुसंधानकर्ताओं के साथ सोमवार को बैठक हुई.
बताया जा रहा है कि यह दुर्बल करने वाली स्थिति कई प्रकार के न्यूरोलाजिकल और शारीरिक गतिविधि-संबंधित लक्षणों के माध्यम से प्रकट होती है, जो पीड़ितों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है. एफआरडीए आमतौर पर चलने में कठिनाई, समन्वय न कर पाना, मांसपेशियों में कमजोरी, बोलने में समस्या और हृदय रोग जैसे लक्षणों से सामने आती है. इससे गंभीर विकलांगता जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
कैसे होती है एफआरडीए की बीमारीः एम्स के डॉ. अचल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि एफआरडीए एफएक्सएन जीन में उत्परिवर्तन के कारण होता है, जिससे प्रोटीन फ्रैटेक्सिन का स्तर कम हो जाता है. इस प्रोटीन की कमी से तंत्रिका और मांसपेशियों की कोशिकाएं खराब हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रोगियों में बीमारी के गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं.
एफआरडीए की प्रगति क्रमिक, लेकिन निरंतर है. लक्षण आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होते हैं और समय के साथ बिगड़ते जाते हैं. अधिकांश व्यक्तियों को अंततः व्हीलचेयर के उपयोग की आवश्यकता होती है और उनमें कार्डियोमायोपैथी और मधुमेह जैसी जीवन-घातक जटिलताएं विकसित हो सकती हैं.