नई दिल्ली: मेडिकल क्षेत्र में हर बीमारी के इलाज के लिए नई-नई तकनीको का आविष्कार हो रहा है. इन तकनीकों से मरीजों के इलाज को सुविधाजनक और अधिक असरदार बनाया जा रहा है. इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए दिल्ली एम्स ने न्यूरो संबंधी बीमारी पार्किंसन और ट्रेमर्स (कंपन) का नई तकनीक से इलाज की पहल शुरू की है. इस तकनीक से न्यूरो संबंधी बीमारियों के मरीजों को जल्दी लाभ मिलता है. साथ ही लंबे समय तक दवाई भी नहीं खानी पड़ती है.
दिल्ली एम्स में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि यह नई तकनीक है. अभी तक पार्किंसन और ट्रेमर्स जैसी बीमारियों के इलाज के लिए सिर्फ दवाई ही विकल्प थी. अब इनके इलाज के लिए एक अत्याधुनिक इनसाइटेक एमआर-गाइडेड एचआईएफयू (मैग्नेटिक रेजोनेंस-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड) तकनीक भी आ गई है. इस तकनीक से इलाज की शुरूआत के लिए एम्स में मशीन लगाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. अगले 6 महीने में यह मशीन एम्स में लग जाएगी और इस तकनीक से न्यूरो संबंधी समस्याओं के मरीजों को इलाज की सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी.
नई तकनीक से फ्री में इलाज: मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि शुरूआत में एम्स में 200 मरीजों को इस तकनीक से फ्री इलाज मिलेगा. उसके बाद इलाज में होने वाले खर्च का निर्धारण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि हमारे देश में पार्किंसंस के लाखों मरीज हैं. लेकिन, इस समस्या को लोग जल्दी से पहचान नहीं पाते हैं. इस नई तकनीक चिकित्सा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत वट्टीकुटी फाउंडेशन एम्स की मदद कर रहा है. इसके लिए एम्स और फाउंडेशन के बीच एक समझौता (एमओयू) भी हुआ है. इसको लेकर बुधवार को एम्स और अमेरिका के न्यूरोसर्जन की उपस्थिति में वट्टीकुट्टी फाउंडेशन की ओर से ट्रांसफॉर्मिंग न्यूरोसाइंस: एमआर-गाइडेड एचआईएफयू - ए गेम चेंजर नाम से एक संगोष्ठी भी आयोजित हुई. इस दौरान यह तय हुआ कि एम्स दिल्ली को वट्टीकुट्टी फाउंडेशन पांच साल की सेवा सहायता के साथ एक अत्याधुनिक इनसाइटेक एमआर-गाइडेड एचआईएफयू (मैग्नेटिक रेजोनेंस-गाइडेड फोकस्ड अल्ट्रासाउंड) प्रणाली दान करेगा.
वट्टीकुटी फाउंडेशन के सीईओ डॉ महेंद्र भंडारी ने कहा कि इस संगोष्ठी में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन और शोधकर्ता एक साथ आए, ताकि विभिन्न न्यूरोलॉजिकल विकारों के उपचार में एमआर-गाइडेड एचआईएफयू की परिवर्तनकारी क्षमता का पता लगाया जा सके. यह तकनीक पारंपरिक सर्जरी के लिए एक नॉन इनवेसिव (बिना चीर फाड़) का विकल्प प्रदान करती है, जिसमें मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करने और उनका सटीक उपचार करने के लिए MRI द्वारा निर्देशित केंद्रित अल्ट्रासाउंड तरंगों का उपयोग किया जाता है. यह दृष्टिकोण आवश्यक कंपन, पार्किंसंस रोग, मिर्गी और न्यूरोपैथिक दर्द जैसी स्थितियों वाले रोगियों के लिए बहुत आशाजनक है.