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बनारस में 450 वर्ष पुरानी परंपरा; तुलसी घाट पर दिखा द्वापर का नजारा, नागनथैया लीला देखने को उमड़ी भीड़ - VARANASI NEWS

VARANASI NEWS : काशी के लक्खा मेला में शुमार नागनथैया का मंचन मंगलवार को किया गया.

नागनथैया लीला देखने को उमड़ी भीड़
नागनथैया लीला देखने को उमड़ी भीड़ (Photo credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 7:22 PM IST

Updated : Nov 5, 2024, 7:31 PM IST

वाराणसी :देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी को परंपराओं के लिए भी जाना जाता है. शायद यही वजह है कि एक 2 साल नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों से काशी ने अपनी परंपरा को संजो कर रखा है. काशी के लक्खा मेला में शुमार नागनथैया का मंचन मंगलवार को तुलसी घाट पर किया गया. कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन यह लीला घाट पर किया जाता है. श्रीराम चरित्र मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने इसी घाट पर लगभग 450 वर्ष पूर्व शुरू किया था.

काशीराज परिवार ने किया परंपरा का निर्वहन :काशीराज परिवार के प्रतिनिधि डॉ अनंत नारायण सिंह परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्व प्रसिद्ध नागनथैया में शामिल हुए और भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का दर्शन किया. सैकड़ों वर्षों से काशी राजपरिवार इस लीला में शामिल होता है. वाराणसी के प्रसिद्ध अस्सी घाट पर शनिवार को कुछ देर के लिए द्वापर युग का नजारा देखने को मिला. द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की गेंद खेलते हुए यमुना नदी में गिर गई थी. तब श्रीकृष्ण ने यमुना नदी में रहने वाले कालिया नाग का मर्दन कर अपनी गेंद नदी से बाहर निकाली थी. गोस्वामी तुलसी दास द्वारा यह लीला अपने काशी इस घाट शुरू किया गया तब से ही इस घाट पर नागनथैया का मंचन होता है.

भगवान अपने बाल सखाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण का रूप रखकर घाट किनारे हाथ में फूल की गेंद लेकर खेलते हुए उसे पानी में उछाल फेंक देते थे. इसके बाद शाम को कदंब के पेड़ पर चढ़कर सीधे नदी में छलांग लगा देते थे. तब नदी के अंदर से कालिया नाग पर सवार होकर बाहर निकलते थे. इसी तरह मंचन काशी में होता है. जो काशी को गोकुल में तब्दील कर देता है. इसके बाद हर तरह भगवान कृष्ण और हर हर महादेव की जय जयकार की गूंज होती है. इस अद्भुत लीला का मंचन हर कोई देख कर अपने आप को धन्य मानता है. लीला में भगवान श्री कृष्ण जैसे ही कालिया नाग का मर्दन करके बाहर निकलते हैं, चारों तरफ हर हर महादेव का उद्घोष होता है, कहीं शंकर की ध्वनि डमरू की ध्वनि और आतिशबाजी के बीच भगवान की आरती की जाती है और इस दौरान भगवान कालिया नाग पर सवार होकर काशीवासियों को दर्शन देते हैं.

संकट मोचन मंदिर के महंत विश्वम्भरनाथ मिश्र ने बताया कि यह लीला आज से लगभग 450 सौ वर्ष पुरानी है. इस लीला का शुभारंभ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा किया गया है. 16वीं सदी से यह लीला की जा रही है. आज भी इस लीला को इस तरह किया गया है. इस लीला में महाराज बनारस के प्रतिनिधि के रूप में कुंवर अनंत नारायण शामिल हुए. इस लीला को देखने के लिए एक बार अकबर भी काशी आए थे, जिसका फोटो आज भी अमेरिका के संग्रहालय में है. आज यहां पर गंगा जमुना बन जाती है और कदम का वृक्ष संकट मोचन मंदिर से लाकर लगाया जाता है. इसके साथ भगवान गंगा में कूदते हैं और कालिया नाग का मर्दन करके उसे यमुना से दूर कर देते हैं यही प्रसंग यहां पर होता है.


श्रद्धालु सुनील मिश्र ने बताया कि काशी के लक्खा मेला में शुमार नागनथिया के इस दृश्य को देखने के लिए पहुंचे. उन्होंने बताया कि आज के दिन कुछ देर के लिए ही काशी द्वापर बन जाता है और भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग का मर्दन करते हैं. इस दृश्य को देखने के लिए मैं दिल्ली से यहां पर आया हूं.



श्रद्धालु स्वाति मिश्रा ने बताया कि आज हम लोग इस अद्भुत लीला को देखने के लिए वाराणसी के तुलसी घाट पर पहुंचे हैं. भगवान श्रीकृष्ण यहां पर आए हैं. कलयुग में देखकर हमें द्वापर युग दृश्य याद आ गया, जब भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों की गेंद लेने के लिए यमुना में कूदे और कालिया नाग का मर्दन किया था.



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Last Updated : Nov 5, 2024, 7:31 PM IST

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