वाराणसी :देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी को परंपराओं के लिए भी जाना जाता है. शायद यही वजह है कि एक 2 साल नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों से काशी ने अपनी परंपरा को संजो कर रखा है. काशी के लक्खा मेला में शुमार नागनथैया का मंचन मंगलवार को तुलसी घाट पर किया गया. कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन यह लीला घाट पर किया जाता है. श्रीराम चरित्र मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने इसी घाट पर लगभग 450 वर्ष पूर्व शुरू किया था.
काशीराज परिवार ने किया परंपरा का निर्वहन :काशीराज परिवार के प्रतिनिधि डॉ अनंत नारायण सिंह परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्व प्रसिद्ध नागनथैया में शामिल हुए और भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का दर्शन किया. सैकड़ों वर्षों से काशी राजपरिवार इस लीला में शामिल होता है. वाराणसी के प्रसिद्ध अस्सी घाट पर शनिवार को कुछ देर के लिए द्वापर युग का नजारा देखने को मिला. द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की गेंद खेलते हुए यमुना नदी में गिर गई थी. तब श्रीकृष्ण ने यमुना नदी में रहने वाले कालिया नाग का मर्दन कर अपनी गेंद नदी से बाहर निकाली थी. गोस्वामी तुलसी दास द्वारा यह लीला अपने काशी इस घाट शुरू किया गया तब से ही इस घाट पर नागनथैया का मंचन होता है.
भगवान अपने बाल सखाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण का रूप रखकर घाट किनारे हाथ में फूल की गेंद लेकर खेलते हुए उसे पानी में उछाल फेंक देते थे. इसके बाद शाम को कदंब के पेड़ पर चढ़कर सीधे नदी में छलांग लगा देते थे. तब नदी के अंदर से कालिया नाग पर सवार होकर बाहर निकलते थे. इसी तरह मंचन काशी में होता है. जो काशी को गोकुल में तब्दील कर देता है. इसके बाद हर तरह भगवान कृष्ण और हर हर महादेव की जय जयकार की गूंज होती है. इस अद्भुत लीला का मंचन हर कोई देख कर अपने आप को धन्य मानता है. लीला में भगवान श्री कृष्ण जैसे ही कालिया नाग का मर्दन करके बाहर निकलते हैं, चारों तरफ हर हर महादेव का उद्घोष होता है, कहीं शंकर की ध्वनि डमरू की ध्वनि और आतिशबाजी के बीच भगवान की आरती की जाती है और इस दौरान भगवान कालिया नाग पर सवार होकर काशीवासियों को दर्शन देते हैं.