गया: मनुष्य ही नहीं बल्कि गायों की भी कुंडलियां बनती हैं. सुनने में यह थोड़ा अनोखा जरूर लग रहा है, लेकिन यह 100 फीसदी सच है. गया के बोधगया अंतर्गत मटिहानी में गिर गायों की गौशाला है. यहां जब बछड़े का जन्म होता है, तो सबसे पहले उनकी कुंडलियां बनाई जाती है. गिर गायों की कुंडलियां बनाने के पीछे का कारण धार्मिक और उनके पंचगव्य औषधि से जुड़ा है.
गुजरात के सौराष्ट्र से लाए थे दो गिर गाय: गया के मटिहानी के बृजेंद्र कुमार चौबे 8-10 साल पहले गुजरात के सौराष्ट्र से दो गिर गाय लाए थे. इसके बाद उन्हें गिर गाय की महत्ता इस कदर भायी कि उन्होंने फिर दो गायें लाई. गुजरात के गिर के जंगलों में पाए जाने वाले भारतीय नस्ल के सबसे प्राचीन गायों में गिने जाने वाले गिर गाय की संख्या बृजेन्द्र कुमार चौबे के गौशाला में 100 से पार कर गई है. इनके गौशाला में बछड़े मिलाकर डेढ़ सौ गाय हैं.
''गिर गायों की कुंडलियां तैयार की जाती हैं. हमारे यहां गायों की कुंडलियां हैं. सभी का नाम भी रखा गया हैं. सभी के नाम देवी-देवताओं के नाम पर ही रखा है, इनमें राधा, सीता, देवकी, गंगा, भागीरथी, पार्वती समेत अन्य नाम शामिल हैं.''- बृजेंद्र कुमार चौबे, पशुपालक
गाय की कुंडली बनाने की पहली वजह:उन्होंने बताया कि गिर गायों की कुंडलियां तैयार करने का पहला मुख्य उद्देश्य उनके नक्षत्र को जानना होता है. समुद्र मंथन के समय मां लक्ष्मी, जिस नक्षत्र में गाय के साथ आई थी. उस नक्षत्र में गिर गाय जन्म ले, तो वह मंदिर में रखने योग्य होती है. नंदी रूप में खोजने के लिए यह एक प्रयास के रूप में होता है.
नक्षत्र कुंडली के आधार पर बनती है औषधी: वहीं, दूसरा कारण मरीजों पर गिर गाय के पंचगव्य के चमत्कार को लेकर है. मरीजों के लिए औषधीय पंचगव्य बनाए जाते हैं. इन गायों के नक्षत्र, कुंडली के आधार पर तैयार किए जाते हैं. नक्षत्र कुंडली के आधार पर ही औषधीय पंचगव्य बनाया जाता है और मरीज के अनुसार दिए जाते हैं. वहीं गिर गाय ऑक्सीजन छोड़ती है, वह जहां होती है, वहां के वातावरण में प्लस 23 ऑक्सीजन होता है.
भारतीय नस्ल की सबसे प्राचीन है गिर गाय:दरअसल गिर गाय भारतीय नस्ल की सबसे प्राचीन गायों में आती है. इसके दूध, घी, छाछ, गोबर, गोमूत्र से औषधि बनता है. गिर गाय का दूध पीने वाले को सेहत संबंधी काफी लाभ होते हैं. प्राचीन काल से ही कहा जाता है कि गिर गाय का दूध अमृत समान होता है. गिर गाय को खाने के लिए भूसे में मिलाकर अश्वगंधा और मूसली समेत अन्य सामग्री देते हैं.
2 गाय से 150 पहुंची संख्या:बृजेंद्र कुमार चौबे डॉ बीआर अंबेडकर विद एजुकेशन कॉलेज चलाते हैं. इनकी गौशाला में फिलहाल में 150 बछड़े गायें हैं. गिर गाय की संख्या इनकी गौशाला में दिन-ब-दिन लगातार बढ़ती जा रही है. जब यह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए थे, तो एक स्थान पर उन्होंने गिर गाय की नस्ल देखी थी, तो काफी प्रभावित हुए थे. इसके बाद वे 8-10 साल पहले उन्होंने दो गिर गाय लाए और फिर अब इसकी संख्या डेढ़ सौ तक पहुंच चुकी है.