लखनऊ: उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन को लेकर आपसी खींचतान अभी भी चल रही है. जहां समाजवादी पार्टी ने 9 में से 6 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा कर दी है. वहीं दो विधानसभा सीट गाजियाबाद और खैर कांग्रेस को देने की बात कही है.
उत्तर प्रदेश में 2024 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को मिले जन समर्थन को देखते हुए यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर भी इस बार गठबंधन को उम्मीद थी कि वह अपना प्रदर्शन दोहराएंगे. इसी को देखते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख अजय राय भी मझवां विधानसभा सीट से अपनी किस्मत आजमाने की तैयारी कर रहे थे.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसके लिए उन्होंने मझवां पर लगातार अपना फोकस बनाकर रखा हुआ था. पर गठबंधन की चर्चाओं में देरी होने और समाजवादी पार्टी के एकतरफा रुख को देखते हुए अजय राय के चुनाव लड़ने के मंसूबों को तगड़ा झटका लगा है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के एचओडी प्रोफेसर संजय गुप्ता का कहना है कि कांग्रेस ने यूपी की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए वहां पर प्रदेश प्रभारी पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी. जिसमें मौजूदा सांसद से लेकर पूर्व विधायक तक की ड्यूटी लगाई गई थी. यहां तक की खुद प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपनी मानसा के अनुसार मझवां विधानसभा सीट पर खुद को पर्यवेक्षक बनाया था.
उन्हें उम्मीद थी कि इस सीट से वह चुनाव लड़ेंगे और समाजवादी पार्टी को यह सीट देने के लिए मना लेंगे. प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि कांग्रेस ने उपचुनाव की तैयारी तो की पर वह गठबंधन को लेकर इस पूरे 3 महीने शांत रही. न उत्तर प्रदेश की टीम और ना ही दिल्ली की टीम ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन को लेकर समाजवादी पार्टी की तरफ से चर्चा जारी रखना मुनासिब समझा.
इसी का खामियाजा है कि अब समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को अपने हिसाब से दो सीटें लड़ने की बात कही है. अब कांग्रेस के सामने समाजवादी पार्टी की बात मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. अब उन्हें समाजवादी पार्टी की शर्तों पर ही चुनाव लड़ना होगा. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी करना ज्यादा बेहतर होगा इन उपचुनाव में हुआ गठबंधन को कैसे जीते इस पर फोकस करें तो बेहतर रहेगा.
जम्मू कश्मीर से शुरू हुआ विवाद महाराष्ट्र तक जारी है:लोकसभा चुनाव के बाद देश में सबसे पहले जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई उम्मीद थी. समाजवादी पार्टी अपने विस्तार के लिए कांग्रेस पर जम्मू कश्मीर और हरियाणा में सीट देने का दबाव बना रही थी. हालांकि कांग्रेस ने दोनों ही जगह पर समाजवादी पार्टी को समायोजित करने से सीधे तौर पर इंकार कर दिया.
इस पूरी कहानी का असर यह रहा कि उत्तर प्रदेश में जहां दोनों पार्टियों का गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ा था वहां भी पूरी प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई. हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में किसी भी तरह के गठबंधन को लेकर दोनों पार्टियों के बीच में चर्चा फिर नहीं हो पाई. इस बीच मझवां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे अजय राय ने लगातार अपनी सक्रियता बढ़ाई.
उन्हें उम्मीद थी कि देर सबेर पार्टी आला कमान समाजवादी पार्टी से बात कर कम से कम तीन विधानसभा सीटें हासिल करने में कामयाब रहेगा. पर अखिलेश यादव की तरफ से गठबंधन को लेकर तवज्जो न मिलने पर यूपी में भी उन्होंने कांग्रेस को कोई तवज्जो नहीं मिली. जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा के परिणाम आते ही अगले दिन समाजवादी पार्टी ने मझवां सहित 6 विधानसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के भविष्य पर ही प्रश्न लगा दिया था.
अब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ने की बात तो कह रही हैं. हालांकि यह भी महाराष्ट्र के सीटों के बंटवारे पर निर्भर है. महाराष्ट्र में कांग्रेस ने 14 सीटें अपने दूसरे गठबंधन पार्टनर्स के लिए छोड़ी हैं. अब यह देखना होगा कि वहां पर समाजवादी पार्टी को कितनी सीट मिलती हैं. उसका सीधा असर उत्तर प्रदेश के सीटों पर भी देखने को मिलेगा.
ये भी पढ़ेंःयूपी उपचुनाव; बीजेपी ने 7 सीटों पर उतारे उम्मीदवार, कानपुर की चर्चित सीसामऊ सीट पर फंसा पेंच