लखनऊ: 28 दिसंबर सन 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना पूर्व ब्रिटिश अधिकारी और 72 लोगों ने मिलकर किया था. कांग्रेस पार्टी ने देश की आजादी की लड़ाई से लेकर उसके बाद संविधान के निर्माण सहित देश के संचालन में अपनी अहम भूमिका निभाई. आजादी के 75 साल बाद कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के साथ ही मौजूदा राजनीति में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर मौजूद है.
बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो कांग्रेस पार्टी के लिए 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी कर पाना लगातार असंभव होता चला गया है. उत्तर प्रदेश में 19 मुख्यमंत्री देने के बावजूद 2022 के विधानसभा में कांग्रेस पार्टी एक विधायक और सवा 2 प्रतिशत वोट के साथ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.
ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की ओर से कांग्रेस पार्टी को दिए गए समर्थन ने उसे एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी तक पहुंचाने की राह दिखाई है. कांग्रेस ने अब 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी ने सभी प्रदेश इकाइयों को भंग कर नए सिरे से संगठन की तैयारी शुरू करने के साथ ही कांग्रेस सेवा दल का विस्तार करने के साथ उसके माध्यम से आम लोगों को जोड़ने की कवायद भी शुरू की है.
कांग्रेस ने यूपी को दिए 19 मुख्यमंत्री: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो प्रदेश में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर गोविंद वल्लभ पंत ने शपथ ली थी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के 70 साल के इतिहास में कांग्रेस 19 बार अपना मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब हो पाई. 1989 तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता में रही.
कांग्रेस ने किसी भी सीएम को पूरा नहीं करने दिया कार्यकाल:उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 19 मुख्यमंत्री को सत्ता में बैठाया पर किसी को भी उसका कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया. लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता का कहना है कि 1977 के आपातकाल और जनता पार्टी के उदय के बाद से ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति काफी खराब होती चली गई. मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में अभी तक कुल 18 बार ही विधानसभा के चुनाव हुए हैं. पर कांग्रेस ने 89 से पहले हुए 10 विधानसभा चुनाव में ही 19 मुख्यमंत्री बना दिए थे.
कांग्रेस ने 1952 से 1967 के बीच में हुए चुनाव में पांच मुख्यमंत्री बदल दिए:प्रोफेसर संजय गुप्ता ने बताया कि 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 346 सीटों पर जीत हासिल की थी. जिसमें से 83 सीटों पर दो-दो प्रतिनिधि जीते थे. इस जीत के बाद कांग्रेस ने आजादी से पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे गोविंद वल्लभ पंत को ही आजाद भारत के उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के पद पर बैठाया था. जो करीब 3 साल तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और बीच में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया. इसके बाद उनके स्थान पर संपूर्णानंद को अगला मुख्यमंत्री बनाया गया था.
1957 में हुए चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया पर 1960 में उन्हें पद से हटाकर उनके स्थान पर चंद्रभानु गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया. जो 1963 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद 1963 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने सुचेता कृपलानी को प्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनाया था. पार्टी ने बीच में ही उन्हें 1967 में हटाकर उनकी जगह चंद्रभानु गुप्ता को दोबारा से मुख्यमंत्री बना दिया.
कांग्रेस ने पहली बार कब खोया बहुमत:उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहली बार 1967 के विधानसभा चुनाव में बहुमत खोया था. उस समय हुए विधानसभा चुनाव की 425 सीटों में से कांग्रेस 199 सीट ही जीत पाई और वह बहुमत से चूक गई. तब प्रदेश के जाट नेता चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल, जनसंघ, सीपीएम (एम), रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया, स्वतंत्र पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने गठबंधन कर 22 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी. चरण सिंह प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री हुए थे. इसके ठीक 1 साल बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
कांग्रेस का 1967 के बाद से कम होता गया जनाधार:प्रोफेसर गुप्ता ने बताया कि फिर साल 1969 में विधानसभा के चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस दो सीटों से बहुमत से पीछे रह गई. चरण सिंह की बीकेडी को 98 और जनसंघ को 49 सीटें मिली. इसके चलते अगले 8 वर्षों तक उत्तर प्रदेश में चार बार राष्ट्रपति शासन और 6 बार नए मुख्यमंत्री बने. जिसमें चौधरी चरण सिंह भी शामिल रहे. यह उस समय की राजनीतिक उठापटक की स्थिति थी कि कांग्रेस 1967 के बाद से उत्तर प्रदेश में पिछड़ती चली गई.
जनता पार्टी के उदय ने कांग्रेस को पहुंचा नुकसान:इंदिरा गांधी के विरोध की लहर पर सवार होकर जनता पार्टी ने 1977 में राष्ट्रीय आपातकाल हटाए जाने के बाद संसदीय चुनाव में भारी जीत हासिल की थी. इसके बाद पार्टी ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनाव में 325 सीटें जीत लीं. पर सीएम पद की अंदरूनी लड़ाई और कलह से चंद्रशेखर और चरण सिंह गुटों में बट गए. इसके चलते रामनरेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया. जनता पार्टी की सरकार 2 साल से भी कम समय चली और बाबू बनारसी दास के रूप में दूसरा मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. लेकिन, 3 साल में ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई. 1980 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के फिर चुनाव हुए और कांग्रेस दोबारा से यूपी की सत्ता में आई.
कांग्रेस का सबसे मजबूत प्रदर्शन 1980 में रहा:कांग्रेस पार्टी के नेता विजेंद्र सिंह ने बताया कि 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 425 में से 309 सीटें जीत ली थीं. साथ ही इस समय हुए लोकसभा चुनाव में 85 में से 83 सीटों पर जीत हासिल की थी. तब पार्टी ने मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया था. यह कांग्रेस पार्टी के उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी जीत थी.
कैसे शुरू हुआ कांग्रेस का बुरा दौर: 1980 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत हासिल की थी पर 1989 में जब चुनाव हुए तो वीपी सिंह ने कांग्रेस पार्टी से बोफोर्स घोटाले के मुद्दे पर विद्रोह कर दिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. भाजपा की बाहरी मदद से सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे.