लखनऊ :राजधानी के विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित नाजिम साहब के इमामबाड़े से चुप ताजिया का जुलूस आज निकाला गया, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए. यह जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट के नाजिम अली इमामबाड़े से शुरू होकर काजमैन पर खत्म होता है. लखनऊ की तहज़ीब और ऐतिहासिक विरासत में चुप ताज़िया के जुलूस का एक विशेष महत्व है. मुहर्रम महीने में शुरू होने वाले शोक की अवधि का यह अंतिम जुलूस माना जात है, जिसमें श्रद्धालु बिना कोई आवाज किए पूरी खामोशी के साथ मातम करते हैं. इसका उद्देश्य हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मौन शोक मनाना है.
क्या है इसका इतिहास
चुप ताज़िया की परंपरा का आरंभ 19वीं सदी में हुआ. यह शिया इमामों में ग्यारहवें इमाम इमाम हसन अल-अस्करी की याद में निकाला जाता है. जुलूस को आमतौर पर मुहर्रम के इस्लामी महीने में शुरू होने वाले शोक की अवधि का अंतिम जुलूस माना जाता है. चुप ताज़िया के नाम से जुलूस सब से पहले लखनऊ में शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत बहू बेगम के वंशज नवाब अहमद अली खान शौकत यार जंग ने की .। यह लखनऊ में अज़ादारी के सबसे महत्वपूर्ण जुलूसों में से एक है. उन्नीसवीं सदी के दौरान नवाब अग्गन मियां के परिवार का यह जुलूस जो पहले चेहलुम (20वां सफ़र ) के दिन उठाया जाता था, उस के बाद चेहलुम के अठारहवें दिन यानी रबी अल-अव्वल की 8 तारीख को स्थानांतरित कर दिया गया था. रबी अल-अव्वल की 8 तारीख की सुबह निकाला गया यह अंतिम शोक जुलूस जिसमें अलम, ज़री और ताज़िया शामिल होते हैं, विक्टोरिया स्ट्रीट में इमामबाड़ा नाज़िम साहब से शुरू होता है और पूरी खामोशी के साथ पटानाला से गुजरते हुए कर्बला काज़मैन में समाप्त होता है, जहां विशाल काले ताज़िया को दफन किया जाता है.
दिलचस्प पहलू