Chhindwara Teacherless Schools: 'पढ़ेगा इंडिया तो बढ़ेगा इंडिया' का नारा तो जोर-शोर से चल रहा है. लेकिन अगर स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है तो कैसे पढ़ेगा इंडिया और कैसे बढ़ेगा इंडिया. हम बात कर रहे हैं छिंदवाड़ा जिले की, जहां पढ़ने के लिए बच्चे स्कूल तो जाते हैं लेकिन पढ़ाने के लिए स्कूलों में टीचर ही नहीं है. सरकार ने 'स्कूल चले हम' अभियान जोर-जोर से चलाया. शुरुआत करने के लिए स्कूलों में अधिकारियों से लेकर मंत्री और जनप्रतिनिधि भी पहुंचे. लेकिन ऐसे स्कूलों पर चर्चा ही नहीं हुई जहां पर पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है. छिंदवाड़ा जिले के 172 स्कूल ऐसे हैं जहां पर एक भी टीचर की नियुक्ति नहीं हुई है.
172 स्कूलों में एक भी टीचर नहीं
शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, छिंदवाड़ा जिले में 172 शासकीय प्राइमरी-मिडिल स्कूल ऐसे है जहां पर पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई है. उसी रिपोर्ट के अनुसार इन स्कूलों में विद्यार्थी तो दर्ज है लेकिन इन्हें पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है. इतना हीं नहीं 411 स्कूल ऐसे है जहां पर सिर्फ एक शिक्षक ही हैं. यानि कि कक्षा पहली से पांचवीं तक या फिर पहली से आठवीं तक की कक्षाओं में सिर्फ एक ही टीचर से काम चल रहा है. विभाग की रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा स्कूल आदिवासी क्षेत्र के हैं, जहां पर एक भी शिक्षक नहीं हैं.
170 स्कूलों में प्रिंसिपल ही नहीं
प्राइमरी-मिडिल स्कूलों में शिक्षकों की कमी की तरह हाई-हायर सेकेंडरी स्कूलों के भी बुरे हाल हैं. जिले के 170 हाई-हायर सेकेंडरी स्कूल ऐसे हैं जहां पर प्रिंसिपल की नियुक्ति ही नहींं हुई है. इन स्कूलों में प्रभारी के भरोसे कामकाज चल रहा है. इसी प्रकार तकरीबन 794 लेक्चरर के पद भी खाली हैं. जिला शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार हाई-हायर सेकंडरी स्कूलों की बागडोर संभालने वाले इन स्कूलों में प्रभारियों के भरोसे साल भर पढ़ाई की मॉनीटरिंग और कामकाज चलाया जाता है. जिले के शासकीय स्कूलों में प्राचार्यों और उच्चतर माध्यमिक शिक्षकों के पद रिक्त होने पर प्रभारियों के भरोसे स्कूल चल रहे हैं. बहुत से लेक्चरर या प्राचार्य किसी ना किसी काम से जिला कार्यालय या फिर अन्य कामों के नाम से अटैच हो गए है. ऐसा ही कुछ हाल लेक्चरर का जिन्होंने जिला मुख्यालय या फिर शहरी क्षेत्र में जुगाड़ से अपनी पोस्टिंग करा ली है. बहुत से तो शासकीय कार्यालयों में अटैच हैं.
सबसे ज्यादा आदिवासी क्षेत्रों का बुरा हाल