छिंदवाड़ा।पेट और लीवर की बीमारी में रामबाण इलाज कहे जाने वाले जामुन का स्वाद अब साल भर चखा जा सकता है. दरअसल यह मौसमी फल है जो बरसात के शुरुआती मौसम में पकता है. लेकिन अब प्रोसेसिंग के जरिए इसका उपयोग साल भर किया जा सकता है. ऐसा ही छिंदवाड़ा के एक युवा ने किया है. जामुन के पल्प से सिरका और गुठलियों से चूर्ण बनाया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है.
दूसरे जिलों से भी मंगाई जाती है जामुन, मिल रहा रोजगार
मौसमी फल जामुन का सीजन आ गया है, जो अब स्वादिष्ट फल के अलावा बीमारियों के इलाज में भी काम आ रहा है. जामुन के पल्प यानी गुदा से सिरका बनाया जा रहा है और गुठलियों का चूर्ण दवाई बनाने के उपयोग में लाया जा रहा है. छिंदवाड़ा जिले में वैसे जामुन का उत्पादन होता है लेकिन पल्प के लिए मंडला और महाराष्ट्र क्षेत्र से आने वाली जामुन का उपयोग ज्यादा किया जा रहा है. जामुन से होने वाले उत्पाद को तैयार करने के लिए स्वरोजगार भी स्थापित किया गया है, जिसमें लोगों को रोजगार के साथ जिले से बनने वाले प्रोडेक्ट की बाहर सप्लाई की जा रही है. हालांकि जिले में जामुन की कोई विशेष वेरायटी नहीं है और देशी जामुन का ही उत्पादन होता है. ऐसे में इस काम को करने के लिए महाराष्ट्र और मंडला से आने वाली जामुन से इन उत्पादों में को तैयार किया जाता है. इस यूनिट को चलाने के लिए तकरीबन 40 महिलाओं को इससे रोजगार भी मिला है.
ऐसे तैयार हो रहा पल्प, साल भर आता है काम
हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में कपिल नरोटे ने जामुन के पल्प के साथ इस व्यवसाय को को शुरू किया है. जामुन के पल्प का सिरका और इसकी गुठलियों से चूर्ण तैयार किया जाता है. यहां से अहमदाबाद, इंदौर सहित दूसरे महानगर में इसकी डिमांड है. हर साल औसतन सात से आठ टन जामुन से सिरका और गुठलियों का चूर्ण तैयार किया जा रहा है. सीताफल की तरह जामुन के पल्प से भी जूस बनाया जा रहा है. यह जूस अहमदाबाद, पूना में कोल्ड ड्रिंक्स और अन्य उत्पादों में काम आ रहा है. जामुन के साथ यह खास बात है कि इसके पल्प के साथ-साथ इसकी गुठलियां भी काम आती हैं. जामुन के सिरके को तैयार करने के बाद इसे मानइस 20 डिग्री में रखना होता है.
जामुन, सीताफल जैसे जंगली फलों से करते हैं पल्प तैयार
जंगली फलों से पल्प तैयार कर सप्लाई करने वाले विलास नरोटे ने बताया कि, ''पिछले कई सालों से जामुन का सिरका और गुठलियों का चूर्ण बना रहे हैं. इसके अलावा वे सीताफल का भी पल्प बनाते हैं. इसके लिए उन्हें मंडला और महाराष्ट्र से जामुन बुलानी पड़ती है, जिसमें गुदा ज्यादा होता है. जामुन के सिरके की महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा डिमांड है. सीताफल के पल्प के बाद जामुन के पल्प से सिरका भी तैयार किया जा रहा है. जिसकी हर साल लगातार डिमांड बढ़ रही है और उनकी गुठलियां भी चूर्ण बनाने में काम आती है.''