छतरपुर:बुंदेलखंड अपने अंदर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समेटे है. इसके साथ ही खानपान के मामले में भी बुंदेलखंड पीछे नहीं है. रमणीय और कई ऐतिहासिक स्थल होने के चलते यहां पर्यटकों का आवागमन भी लगातार बना रहता है. यहां के कुछ युवाओं और महिलाओं ने इसको अपना रोजगार बना लिया है और आज वे बुंदेली विरासत और संस्कृति को आगे बढ़ाने के साथ अपने जीवन को भी आगे बढ़ा रहे हैं. बुंदेलखंड घूमने आने वाले टूरिस्टों को यहां का पारंपरिक भोजन का स्वाद चखा रहे हैं, इसके बदले उनको आय की प्राप्ति भी हो रही है. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी बुंदेली कल्चर और विरासत को बढ़ावा देने पर जोर दिया है.
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी दिया था जोर
बुंदेलखंड आने वाले पर्यटकों का बुंदेली व्यंजन और यहां के पारंपरिक रहन-सहन के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. लोग शहर की आपाधापी से निकलकर शुद्ध हवा और देशी खानपान के कल्चर को महत्व दे रहे हैं. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी सागर में हुई इन्वेस्टर मीट में बुंदेली कल्चर को बढ़ावा देने और उसे रोजगार में तब्दील करने की बात कही थी. यहां के कुछ युवाओं और महिलाओं ने छतरपुर से लगी केन नदी के पास पन्ना के बीच मंडला में 'बुंदेली विरासत' के नाम से होम स्टे शुरू किया है. यहां का खानपान रहन-सहन सब बुंदेली परंपरा पर आधारित है जो, यहां आने वाले टूरिस्टों को एक अलग सुकून देता है.
बुंदेली विरासत होम स्टे में क्या है व्यवस्था
इस होम स्टे में आने वाले लोगों को बुंदेली परंपरा के अनुसार जमीन पर बिठाकर खाना खिलाया जाता है. सोने के लिए पारंपरिक तरीके से रस्सी से बनी हुई खाट की व्यवस्था है. होम स्टे के चारों तरफ का एरिया खुला है. आस-पास के पेड़ों पर पक्षियों का कलरव आसानी से सुना जा सकता है. यहां खाने में बुंदेलखंड के पारंपरिक व्यंजन जैसे- मुरका, डुबरी, सिठौरा, बरा, चीला, मालपुआ, गुलगुला, कढ़ी, मंगौड़ी, भजिया, बैंगन का भर्ता, ज्वार, बाजरा, मक्का और गेहूं की रोटी जैसे कई व्यंजन परोसे जाते हैं. इसके अलावा एक और खास बात ये है कि ये सभी भोजन पारंपरिक तरीके से चूल्हे पर बनाए जाते हैं.