गया: छठ में अरवा चावल का विशेष महत्व होता है. नहाय खाय के दिन व्रती अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी ग्रहण करते हैं. खरना के दिन गुड़ चावल का प्रसाद खाया जाता है. ऐसे में लोकआस्था के महापर्व'छठ 'के लिए जिले के निवासी लालाजी का परिवार शुद्धता,पवित्रता के साथ धान की खेती करता है. शुद्धता इनकी पहचान है. लाला जी के परिवार का यही उद्देश्य है कि पूजा पाठ की कोई भी सामग्री अशुद्ध ढंग से नहीं बने.
शुद्धता और पवित्रता से धान की खेती:खेती करके भी धर्म की सेवा का उदाहरण लाला जी का परिवार दे रहा है. दरअसल जिले के आमस प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांव में एक महूआवां गांव है, क्षेत्र में यह गांव प्रसिद्ध है और इसकी प्रसिद्धि के पीछे किसान लाला सुदामा प्रसाद और उनके पुत्र राजीव कुमार श्रीवास्तव हैं.
छठ के लिए होता है अरवा चावल तैयार: लाला सुदामा प्रसाद 15 से 20 बीघे अपनी भूमि पर छठ पर्व के लिए विशेष रूप से धान की खेती करते हैं. फिर उसको पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ शुद्धता का ख्याल रख कर अपनी ही जगह पर 'अरवा चावल ' तैयार कराते हैं, ताकि छठ पूजा में इसका प्रयोग बिना किसी संकोच के हो.
8 साल से लाला जी का परिवार निभा रहा भागीदारी: छठ पूजा के अवसर पर अरवा चावल की खीर बनती है. विगत 8 वर्षों से लाला सुदामा प्रसाद और उनके पुत्र राजीव कुमार श्रीवास्तव छठ पूजा के लिए अलग से खेती कर रहे हैं. लाला जी के नाम से प्रसिद्ध पिता पुत्र किसानी करते हैं. किसानी का इनका यह काम पुश्तैनी है और शेरघाटी आमस क्षेत्र के बड़े और संपन्न किसानों में एक हैं. वैसे तो लाला जी का परिवार 1970 से दर्जनों बीघे में खेती कर रहा है. धान के अलावा गेहूं ,अरहर और दूसरी फसल की खेती करते हैं, लेकिन छठ पूजा के लिए धान की खेती करने के कारण ये प्रसिद्ध हैं.
जून में रोपनी, अक्टूबर में कटाई: जिले के पहले ऐसे ये किसान हैं जो सबसे पहले धान की खेती करते हैं. जून के महीने में खेतों में बिचड़ा गिरा देते हैं. जुलाई के पहले सप्ताह में रोपनी पूरी हो जाती है. अक्टूबर के पहले सप्ताह में धान फसल की कटाई शुरू हो जाती है. सिर्फ छठ पूजा के लिए पहले धान फसल लगाते हैं, जबकि बाकी खेतों में अपने समय पर धान फसल की रोपनी और कटाई होती है.
"हर वर्ष समय पर वर्षा हो या ना हो जून के महीने में खेतों में बीज डलवा देते हैं, ताकि दिवाली से पहले धान फसल तैयार हो जाए. क्योंकि अरवा चावल तैयार करने में एक सप्ताह समय लगता है, लगभग 15 बीघे में धान की कटाई हो चुकी है और अब वह सूखने के लिए रखा गया है. अगले एक हफ्ते में अरवा चावल बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाऐगी."- राजीव कुमार श्रीवास्तव, किसान
'पैसा अर्जित करना उद्देश्य नहीं':लाला सुदामा के पुत्र राजीव कुमार श्रीवास्तव ने इस संबंध में बताया कि खेती उनके यहां वर्षों से हो रही है. पहले दादाजी करते थे फिर पिताजी करने लगे, अब हम भी कर रहे हैं. विगत 7 वर्ष पहले हम लोग खेती आस्था के लिए करें, ताकि छठ जैसे पवित्र पर्व में शुद्ध चीज हम श्रद्धालुओं को प्रोवाइड कर सकें. क्योंकि पैसा कमाना हमारा उद्देश्य नहीं होता है.
"पैसा तो हम धान बेचकर भी अर्जित कर सकते हैं, लेकिन हमको लगा कि शुद्धता के साथ छठ में लोगों को चावल उपलब्ध कराएं तो यह हमारे लिए सौभाग्यशाली भी होगा और पुण्य का भी काम होगा. यह भी धर्म का काम है और पुण्य कमाने का एक बेहतरीन तरीका है. तभी से पिताजी और हम इस काम को कर रहे हैं."-राजीव कुमार श्रीवास्तव, किसान
'हमारा चावल पूजा में होता है उपयोग': राजीवने कहा कि उद्देश्य यही है कि हम जो काम करें उसमें ही धर्म की सेवा हो. हमारी चीज पूजा पाठ में इस्तेमाल हो जाए तो यह हमारे लिए गर्व और बड़ी उपलब्धि है. राजीव कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि धान काटने के बाद सबसे पहले अपने राइस मिल में लगभग 50 क्विंटल अरवा चावल पवित्रता के साथ तैयार करवाते हैं.