बीकानेर. सनातन धर्म में चार्तुमास व्रत का अत्यधिक महत्व है. आषाढ शुक्ला एकादशी (देवशयनी) से कार्तिक शुक्ला एकादशी (देवऊठनी एकादशी) तक गृहस्थी लोग पुरुषार्थ चतुष्टय नियम धर्म, अर्थ, काम मोक्ष की प्राप्ति के लिए रखते हैं.
चार महीनों तक व्रत :पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि संन्यासी यत्ति महामण्डलेश्वर शंकराचार्य की परम्परानुसार गुरु पूर्णिमा से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक अनेक धार्मिक अनुष्ठान और भागवत्त धर्म सम्मेलन द्वारा चार महीनों तक अपने तपोबल को बढ़ाने के लिए व्रत रखते हैं.
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चार माह का महत्व :पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि आषाढ श्रावण, भाद्रपद और कार्तिक चार महीने चातुर्मास के व्रत होते हैं. चार महीनों में देवशयन में चले जाते हैं इसलिए सभी शुभ मांगलिक कार्यक्रम विवाह, यज्ञोपवित मुंडन नवीन गृह प्रवेश वर्जित होते हैं. लेकिन इन दिनों धार्मिक अनुष्ठान रामायण, भागवत् शिव पुराण, नामकरण नक्षत्र शान्ति आदि कर्म करने की शास्त्र में मनाही नहीं है.
भगवान विष्णु क्षीर सागर में करते शयन : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि पद्म पुराण के अनुसार चामुर्मास के दौरान अनेक बड़े बड़े व्रत त्योहार आते हैं. मान्यता के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते है और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन शयन से उठते हैं.
जैन धर्म में भी महत्व :जैन धर्म में चातुर्मास व्रत का अत्यधिक महत्व है, जैन आचार्यों द्वारा अनेक धार्मिक अनुष्ठान एवं सत्संग के माध्यम से मनुष्यों सद्मार्ग दिखाया जाता है.