लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा, है कि लखनऊ जनपद न्यायालय के अदालत कक्षों में कम से कम प्रयोगिक आधार पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए. बाद में अन्य जिला अदालतों में भी ऐसा किया जा सकता है. न्यायालय ने इस संबंध में प्रशासनिक पक्ष को निर्देश जारी किये हैं. न्यायालय ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से प्रशासनिक निर्णय लेने के लिए इस अनुरोध को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने को भी कहा.
यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओपी शुक्ला की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर आदेश पारित किया है. उक्त जनहित याचिका के तहत न्यायालय ने 2018 में जिला अदालत परिसर, लखनऊ में अराजकता के संबंध में स्वत: संज्ञान दर्ज लिया था. न्यायालय ने कहा, कि जनपद न्यायालय, लखनऊ के कोर्ट परिसर में अनियंत्रित व्यवहार की कई घटनाएं हुई हैं. कभी-कभी ऐसी घटनाएं अदालत कक्षों या न्यायाधीशों के कक्षों की ओर जाने वाले गलियारों में हुई हैं, यही नहीं कुछ घटनाएं अदालत कक्षों के अंदर भी हुई हैं, जिनमें कई वकील अदालत कक्षों में घुस गए और न्यायाधीश या विपक्षी वकीलों पर दबाव बनाने की कोशिश की.
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सुनवाई के दौरान न्यायालय को जानकारी दी गई, कि गाजियाबाद कोर्ट परिसर में सीसीटीवी लगाए गए हैं. इस पर न्यायालय ने कहा, कि हम उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष से अनुरोध करते हैं कि वह जनपद न्यायालय, लखनऊ में उचित स्थानों पर अदालत कक्षों के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने की व्यवहार्यता पर विचार करें. न्यायालय ने कहा, कि भले ही यह प्रयोगिक आधार पर हो, ताकि ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके, कि न्यायाधीश कानून के अनुसार स्वतंत्र और निडर होकर अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम हों.
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया, कि यह जिला अदालत में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों पर कोई कलंक लगाने के लिए नहीं है. क्योंकि उनमें से अधिकांश का व्यवहार अच्छा है, लेकिन कुछ ब्लैक शिप्स' हैं, जो सभी का नाम खराब करते हैं, इस उपाय की सिफारिश केवल उनके गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए की जा रही है. क्योंकि हमारे पास ऐसी रिट याचिकाओं की बाढ़ आ गई है, जहां वकीलों या वकील होने की आड़ में उन लोगों पर पीठासीन अधिकारियों पर दबाव बनाने और कभी-कभी जबरन घुसने का प्रयास करके अदालती कार्रवाई को किसी न किसी तरह से प्रभावित करने का आरोप लगाया जाता है.
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