लखनऊ: लोकसभा चुनाव के बाद अब उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होगा. ऐसे में एक बार फिर समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच मुख्य रूप से सियासी घमासान देखने को मिलेगा. लोकसभा चुनाव में आए परिणामों से इंडिया गठबंधन पूरी तरह से उत्साहित है और भाजपा का प्रदेश से सफाई करने का दावा किया जा रहा है. जबकि भाजपा लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाने और संगठन सरकार के स्तर पर जो खामियां रही, उन्हें दूर करते हुए चुनौतियों से पार पाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है.
सपा और कांग्रेस में सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला बाकीःउपचुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने की बात कही जा रही है.समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अध्यक्ष अखिलेश यादव के स्तर पर हुई शुरुआती बातचीत में कांग्रेस को एक सीट या अधिक दबाव बनाने पर दो दिए जाने पर सहमति जताई गई है. कौन-कौन सी सीट देनी है इसको लेकर कांग्रेस के साथ आने वाले समय में बातचीत की जाएगी. इस आधार पर अंतिम फैसला किया जाएगा. जबकि कांग्रेस पार्टी के स्तर पर विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर आने वाले सप्ताह में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक करके समाजवादी पार्टी से सीटों की डिमांड आदि पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. जहां पर कांग्रेस पार्टी स्थिति काफी मजबूत है, वही सीट देने की चर्चा की जा रही है.
अगले महीने हो सकता है चुनाव की घोषणाःबता दें कि यूपी की नौ विधानसभा सीटों से विधायक रहे नेता लोकसभा चुनाव में संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए हैं. ऐसे में इन सीटों पर उपचुनाव होगा. साथ ही कानपुर की एक सीट से विधायक इरफान सोलंकी को सजा मिलने के बाद रिक्त हो गई है. ऐसे में 10 सीटों पर उपचुनाव आने वाले समय में होगा. निर्वाचन आयोग के स्तर पर जुलाई महीने में उपचुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा सकता है. 6 महीने के अंदर ही उपचुनाव कर जाने की व्यवस्था है. ऐसे में विधायकों की तरफ से सांसद निर्वाचित होने के बाद विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र भी दिया जा चुका है. इनमें अखिलेश यादव से लेकर अवधेश प्रसाद चंदन चौहान जैसे नवनिर्वाचित सांसदों ने विधानसभा सदस्यता से अपने त्यागपत्र दे दिए हैं.