डॉ. गोविंद चोयल, आयुर्वेद विभाग (ETV Bharat Ajmer) अजमेर. यदि आपको लंबे समय तक कब्ज रहता है तो सतर्क हो जाएं. आंतों को प्रभावित कर एनल फिशर रोग का कारण भी बन सकता है. अजमेर संभाग के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गोविंद चोयल से जानते हैं एनल फिशर के कारण, लक्षण और उपचार को लेकर हेल्थ टिप्स.
आयुर्वेद विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गोविंद चोयल बताते हैं कि शाराीरिक समस्याओं में एनल फिशर की समस्या आम हो गई है. इस रोग से बड़े ही नहीं बच्चे भी ग्रस्त हो रहे हैं. इसका कारण अनियमित जीवन शैली और खान-पान है. इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. लगातार कब्ज रहने से पाचन क्रिया प्रभावित हो रही है.
वहीं, आंतों में जटिल समस्या हो जाती है. विबंध के कारण मल त्यागने में काफी परेशानी होती है. लगातार विबंध रहने पर रोगी के गुदा मार्ग में चीरा लग जाता है. इसको आयुर्वेद में परिकृतिका (फिशर) कहते हैं. मल की कठोरता के कारण मल त्यागते वक्त और उसके बाद भी गुदा द्वार पर असहनीय दर्द रहता है. फिशर काफी तकलीफदय रोग है. इलाज में देरी होने से फिशर बढ़ जाता है और रोगी की तकलीफ असहनीय बन जाती है.
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एनल फिशर के लक्षण : डॉ. चोयल बताते हैं कि मल त्यागने के समय और बाद में असहनीय दर्द होता है. फिशर लंबे समय तक रहने पर मल त्याग के बाद गुदा द्वार से रक्त स्राव भी होने लगता है. कई बार रक्त स्राव ज्यादा होता है. इस कारण रोगी में खून की कमी होने लगती है और वह कमजोरी महसूस करने लगता है.
एनल फिशर का उपचार : आयुर्वेद विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. गोविंद चोयल बताते हैं कि एनल फिशर की शुरुआत में ही रोगी चिकित्सक से परामर्श लेता है तो औषधी से रोगी को कर राहत मिल जाती है, लेकिन जब उपचार नहीं करवाने पर फिशर बढ़ने लगता है तो गुदा द्वार पर लगे चीरें यानी फिशर के ऊपरी सिरे पर अतिरिक्त चमड़ी उभरती है. इसको सेंटिनल टैग कहते हैं. इस कारण गुदा द्वार में लगे चीरों की वजह से बना घाव भर नहीं पाता, तब आयुर्वेदिक पद्धति के अनुसार रोगी के शार सूत्र के जरिए सेंटिनल टैग को हटाया जाता है. ऐसे रोगी को आराम आने लगता है.
यह खाएं और यह न खाएं : डॉ. चोयल बताते हैं कि एनल फिशर की रोकथाम के लिए आवश्यक है कि लोग अपनी जीवन शैली और खान-पान में सुधार करें, ताकि कब्ज ना रहे. कब्ज के निदान के लिए आवश्यक है कि समय पर भजन किया जाए और भोजन में फाइबर की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए. इसके अलावा हरी सब्जियां, फल और फलों के रस, मोटा अनाज, दही, छाछ का सेवन करें.
पानी पर्याप्त मात्रा में पिएं. रात को पानी में भीगी हुई किशमिश और मुनक्का भी कब्ज को दूर करने में कारगर है. इसके अलावा रात को सोने से आधे घंटे पहले दूध पीएं. उन्होंने बताया कि कब्ज की समस्या रहने पर मसालेदार भोजन, मैदा से बनी खाद्य सामग्री, तली-भुनी हुए खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करें. वहीं, ज्यादा समय तक भूखे नहीं रहें.